गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है

Gudi Padwa Katha: क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा, जानें इस त्योहार के पीछे की पौराणिक कथा और महत्व


गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से चैत्र माह में नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसी दिन से नववर्ष की शुरुआत भी होती है। इस साल गुड़ी पड़वा 30 मार्च, रविवार को मनाई जाएगी और इसी दिन चैत्र नवरात्रि भी शुरू होगी। गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से मराठी समुदाय में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इस त्योहार को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे भारत के अलग-अलग राज्यों में उगादी, छेती चांद और युगादी जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने घर के प्रवेश द्वार को कई अन्य तरीकों से सजाती हैं और रंगोली बनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि घर में रंगोली बनाने से नकारात्मकता दूर होती है।


गुड़ी पड़वा का इतिहास


हमारे देश में सभी त्योहारों का अपना महत्व है। होली और दिवाली जहां पूरे देश में समान रूप से महत्वपूर्ण त्योहारों के रूप में मनाए जाते हैं, वहीं कुछ त्योहार ऐसे भी हैं जो भारत के कुछ खास इलाकों में ही बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है गुड़ी पड़वा। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है और इसे संवत्सर पड़वो के नाम से भी जाना जाता है।

गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से चैत्र माह में नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इसी दिन नववर्ष की शुरुआत भी होती है। इस वर्ष गुड़ी पड़वा 30 मार्च, रविवार को मनाई जाएगी और इसी दिन चैत्र नवरात्रि भी आरंभ होगी। गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से मराठी समुदाय द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे भारत के अलग-अलग राज्यों में उगादी, छेती चांद और युगादी जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस दिन घरों को हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक स्वस्तिक से सजाया जाता है।


गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा


दरअसल महाराष्ट्र में इसे मनाने का कारण मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध में जीत है। माना जाता है कि युद्ध में उनकी जीत के बाद से ही गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाने लगा। गुड़ी पड़वा को रबी की फसलों की कटाई का प्रतीक भी माना जाता है।

गुड़ी पड़वा नाम दो शब्दों से बना है। 'गुड़ी' जिसका अर्थ है भगवान ब्रह्मा का ध्वज या प्रतीक और 'पड़वा' जिसका अर्थ है चंद्र चरण का पहला दिन। इस त्योहार के बाद रबी की फसलों की कटाई की जाती है क्योंकि यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है।

'गुड़ी' शब्द का अर्थ 'विजय का ध्वज' भी होता है। यह त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (चैत्र अमावस्या के बाद) को मनाया जाता है और इस अवसर पर विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी सजाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन अपने घर को सजाने और गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है और साल भर खुशियां बनी रहती हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है।


गुड़ी पड़वा का महत्व


हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया था। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने दिन, सप्ताह, महीना और वर्ष की शुरुआत की थी। उगादि को ब्रह्मांड के निर्माण का पहला दिन माना जाता है और इसलिए गुड़ी पड़वा पर भगवान ब्रह्मा की पूजा करने की परंपरा है।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन भगवान श्री राम विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे थे। इसलिए यह विजय पर्व का भी प्रतीक है।


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