शरद पूर्णिमा की खीर

अमृत में बदल जाती है चांदनी में रखी खीर, जानिए क्या है कोजागरा के दिन खीर रखने की परंपरा


कोजागरा पूजा जिसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, मिथिलांचल सहित पूरे उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण पर्व है। ये पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और देवी लक्ष्मी की आराधना से धन, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन खीर को चांदनी में रखने और पूरी रात जागरण करने की परंपरा है। मान्यता है कि माँ लक्ष्मी रात्रि में धरती पर भ्रमण करती हैं और जागते हुए भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही गरीबों की सेवा और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। जिससे लंबे समय तक सुख-समृद्धि बनी रहती है।


माता लक्ष्मी करतीं हैं पृथ्वी का विचरण


इस दिन माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी धन, समृद्धि और सुख की देवी मानी जाती हैं। कोजागरा पर्व से जुड़ी प्रथा के अनुसार इस दिन जागरण करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। क्योंकि, ऐसा विश्वास है कि माँ लक्ष्मी रात्रि में पृथ्वी पर विचरण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है। कोजागरा पर्व आश्विन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन अत्यंत शुभ होता है। 


इसलिए विशेष है ये दिन


पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन माँ की विशेष पूजा-अर्चना करने से सुख, सौभाग्य, स्वास्थ्य और धन-संपदा की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा देवों के चातुर्मास शयनकाल का अंतिम चरण होता है। जिसके बाद शुभ कार्यों का आरंभ भी हो जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा से माँ लक्ष्मी की आराधना करने से घर में धन-संपत्ति और समृद्धि का आगमन होता है। 


नवविवाहितों के लिए ख़ास


नवविवाहित जोड़ों के घरों में इस पर्व को विशेष उत्साह से मनाया जाता है। इसमें वधू पक्ष की ओर से दूल्हे के घर कौड़ी, वस्त्र, पान, मखाना, फल, मिठाई, पाग इत्यादि भेजे जाते हैं। जो शुभता और सौभाग्य का प्रतीक हैं।


इस रात अमृतमय होती है चांदनी


कोजागरा की रात्रि में एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है। इस दिन सनातन धर्म के अनुयायी खीर बनाकर उसे रातभर चांदनी के नीचे खुले आसमान में रखते हैं। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात का चंद्रमा अमृत समान किरणें बिखेरता है। जिससे खीर में विशेष गुण आ जाते हैं। इस खीर को अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। पूजा के दौरान घी का दीपक जलाना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।


जानिए “कौन जाग रहा” का महत्व


कोजागरा पूजा की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा जागना है। मान्यता है कि इस रात्रि माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है। "को जाग्रत" शब्द का उच्चारण करते हुए देवी लक्ष्मी उस घर में जाती हैं जहाँ लोग जागकर उनकी भक्ति में लीन होते हैं। इसलिए इस पर्व पर मध्यरात्रि तक जागना अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो लोग जागरण कर माँ लक्ष्मी की पूजा करते हैं। उनके घर देवी का वास होता है और वे धन-धान्य से संपन्न होते हैं।


पुण्य प्राप्ति के लिए दान का महत्व


कोजागरा पर्व पर दान करने की भी परंपरा है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करना, दूध-दही, चावल और अन्य अनाज का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। जो लोग इस दिन जरूरतमंदों की मदद करते हैं, उन्हें दीर्घकालिक सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।


कोजागरा पर्व की विशेषताएँ


कोजागरा पूजा ना केवल धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह परिवार और समाज को एकजुट करने वाला पर्व भी है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, मिठाइयों और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं और रातभर भक्ति में डूबे रहते हैं।


........................................................................................................
खाटू वाले श्याम धणी को, हैलो आयो है(Khatu Wale Shyam Dhani Ko Helo Aayo Hai)

खाटू चालों खाटू चालों,
खाटू वाले श्याम धणी को,

जागरण की रात मैया, जागरण में आओ (Jagran Ki Raat Maiya Jagran Mein Aao)

जागरण की रात मैया,
जागरण में आओ,

मेरी आस तू है माँ, विश्वास तू है माँ(Meri Aas Tu Hai Maa Vishwas Tu Hai Maa)

मेरी आस तू है माँ,
विश्वास तू है माँ,

मैय्या का चोला है रंगला

हो, लाली मेरी मात की, जित देखूँ तित लाल
लाली देखन मैं गया, मैं भी हो ग्या लाल

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।