क्यों मनाते हैं माघ पूर्णिमा

क्यों मनाई जाती है माघ पूर्णिमा? जानिए क्या है इसकी वजह  


सनातन हिंदू धर्म में, पूर्णिमा तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को प्रिय है। माघ पूर्णिमा के पर्व को वसंत ऋतू के आगमन के दौरान मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान और उपासना करने से पापों से छुटकारा मिलता है। साथ ही जीवन खुशहाल होता है। तो आइए, इस आर्टिकल में विस्तार पूर्वक जानते हैं कि माघ पूर्णिमा का त्योहार को क्यों मनाया जाता है और   इसे मानने के पीछे क्या वजह है। 


क्यों मनाया जाता है माघ पूर्णिमा? 


ज्योतिष के अनुसार, जब चंद्रमा कर्क राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब उस समय माघ पूर्णिमा पड़ती है। ज्योतिष के अनुसार, इस समय किया गया स्नान और दान विशेष फल देता है। इस दिन सच्चे भाव से पूजा-पाठ करने और पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से सूर्य और चंद्रमा के दोषों से भी मुक्ति मिलती है। वहीं, ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं, इसलिए गंगा स्नान को बहुत शुभ माना जाता है।शास्त्रों के मुताबिक, माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसलिए, इस दिन जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

माघ पूर्णिमा शुभ मुहूर्त 


वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा की तिथि का प्रारंभ 11 फरवरी को शाम 06 बजकर 55 मिनट पर हो रही है और अगले दिन यानी 12 फरवरी को शाम 07 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि का अधिक महत्व है। ऐसे में 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा मनाई जाएगी।


  • ब्रह्म मुहूर्त:- प्रातः 05 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 10 मिनट तक
  • गोधूलि मुहूर्त:- शाम 06 बजकर 07 मिनट से शाम 06 बजकर 32 मिनट तक
  • अभिजीत मुहूर्त:- कोई नहीं
  • अमृत काल:- शाम 05 बजकर 55 मिनट से रात 07 बजकर 35 मिनट तक


माघ पूर्णिमा कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे तो उस समय नारद जी वहां पधारे। नारद जी को देख भगवान विष्णु ने कहा “हे महर्षि आपके आने की क्या वजह है?” तब नारद जी ने बताया कि मुझे ऐसा कोई उपाय बताएं, जिससे लोगों का कल्याण हो सके।” इसपर भगवान विष्णु जी ने कहा कि “जो जातक संसार के सुखों को भोगना चाहता है और मृत्यु के बाद परलोक जाना चाहता है उसे पूर्णिमा तिथि पर सच्चे मन से सत्यनारायण भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसके बाद नारद जी को भगवान श्रीहरि से व्रत विधि के बारे में विस्तार से बताया। भगवान विष्णु ने कहा कि इस व्रत में दिन भर उपवास करना चाहिए और शाम को भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करना चाहिए और प्रभु को भोग अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से सत्यनारायण देव प्रसन्न होते हैं।


श्री विष्णु रूपम मंत्र 


शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

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प्रेतराज चालीसा (Pretraj Chalisa)

॥ गणपति की कर वंदना, गुरू चरनन चितलाये।

श्री नवग्रह चालीसा (Shri Navgraha Chalisa)

श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय ।
नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय ॥

अथार्गलास्तोत्रम् (Athargala Stotram)

पवित्र ग्रंथ दुर्गा सप्तशती में देवी अर्गला का पाठ देवी कवचम् के बाद और कीलकम् से पहले किया जाता है। अर्गला को शक्ति के रूप में व्यक्त किया जाता है और यह चण्डी पाठ का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

हरि तुम हरो जन की भीर(Hari Tum Haro Jan Ki Bhir)

हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥

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