क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति

Makar Sankranti Kyu Manate Hain: क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति? यहां जानें इसके पीछे की वजह 


सनातन हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई प्रमुख त्‍योहार मनाने की परंपरा है। इन्‍हीं में से एक है मकर संक्रांति। शास्‍त्रों में मकर संक्रांति पर स्‍नान-ध्‍यान और दान करने से विशेष फल प्राप्त होता है। मकर संक्रांति पर खरमास खत्म हो जाता है। इसी के साथ शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी प्रतिबंध समाप्त हो जाती है। धार्मिक मान्‍यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर साधक के पास वापस लौट जाता है।  तो आइए, इस आर्टिकल में मकर संक्रांति से जुड़ी कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


इस दिन गंगा पुत्र भीष्म ने त्यागे थे अपने प्राण 


महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के तीरों से घायल होने के बाद भीष्म पितामह ने तुरंत अपने प्राण नहीं त्यागे थे। दरअसल, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर देह का त्याग किया था। मान्यता है कि सूर्य उत्तरायण के दिन मृत्यु होने पर मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

सूर्य उत्तरायण के दिन भीष्म पितामह ने अपनी देह का त्याग किया था, इसलिए सूर्य उत्तरायण के दिन भीष्म अष्टमी भी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता अनुसार मृत्यु के समय भीष्म की आयु 150-200 वर्ष के बीच थी। मान्यता है कि उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्माएं कुछ पल के लिए देवलोक चली जाती हैं। अथवा उन्हें पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है।


मकर संक्रांति माना जाता है देवों का दिन 


मकर संक्रांति दान, पुण्य के लिए पवित्र दिन है। इस दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। खरमास की समाप्ति के साथ ही इस दिन भगवान विष्णु सहित अन्य देवता भी जाग जाते हैं। इसलिए, इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। वहीं, मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है। इस कारण इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का काफी महत्व है। 


इस दिन सागर से मिली थीं मां गंगा  


धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के पवित्र दिन ही माता गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। बता दें कि महाराज भगीरथ ने इस दिन अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था। इसलिए, मकर संक्रांति पर पश्चिम बंगाल के गंगासागर में भव्य मेला भी आयोजित किया है। 


पिता-पुत्र का हुआ था मिलन 


मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की  मकर राशि में पूरे एक मास के लिए निवास करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि की अपने पिता से नहीं बनती है। हालांकि, सूर्यदेव के मकर में गोचर के दौरान उन्हें अपने पुत्र से कोई आपत्ति नहीं है। 


मकर संक्रांति के हैं विभिन्न रंग रूप 


बता दें कि मकर संक्रांति को पूरे भारत में विभिन्न नामों से जानते हैं। कई स्थानों पर इसे माघ संक्रांति भी कहते हैं। जहां, उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति तो वहीं गुजरात में उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। वहीं, पंजाब में इसे लोहड़ी और उत्तराखंड में उत्तरायणी के नाम से लोग मनाते हैं। जबकि, केरल में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से मनाया जाता है। बता दें कि  2025 में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। 


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खरमास की कथा

सनातन धर्म में खरमास को विशेष महत्व बताया गया है। यह एक ऐसा समय होता है जब सूर्य देव धनु या मीन राशि में रहते हैं जिसमें मांगलिक कार्य पर रोक रहती है। इस साल खरमास रविवार, 15 दिसंबर 2024 से शुरू हो रहा है जो 14 जनवरी, 2025 को समाप्त होगा।

धनतेरस पूजा विधि

धनतेरस का नाम धन और तेरस ये दो शब्दों से बना है जिसमें धन का मतलब संपत्ति और समृद्धि है और तेरस का अर्थ है पंचांग की तेरहवीं तिथि। यह त्योहार खुशहाली, सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

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