विवाह पंचमी क्यों मनाई जाती है

क्यों मनाई जाती है विवाह पंचमी, त्रेता युग से जुड़ा है इस त्योहार का इतिहास 


मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाई जाती है जो भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की स्मृति में मनाया जाने वाला पवित्र पर्व है। सनातन धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि त्रेता युग में इसी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और माता सीता विवाह बंधन में बंधे थे। विवाह पंचमी के दिन राम-सीता की पूजा-अर्चना, रामचरितमानस पाठ और दान-पुण्य का विधान है। इस पर्व को मनाने से ना केवल वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है बल्कि व्यक्ति को आध्यात्मिक बल और पुण्य भी प्राप्त होता है।


क्यों मनाई जाती है विवाह पंचमी?


विवाह पंचमी सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व है जो भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, त्रेता युग में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मिथिला नगरी में भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था। यही कारण है कि इस तिथि को हर वर्ष विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है।


सियाराम आदर्श वैवाहिक जीवन के प्रतीक


भगवान श्रीराम और माता सीता की जोड़ी हिंदू धर्म में आदर्श वैवाहिक जीवन का प्रतीक मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि उनके जीवन से हमें परिवार, प्रेम, त्याग और मर्यादा का संदेश मिलता है। विवाह पंचमी पर इनकी पूजा-अर्चना कर लोग उनके गुणों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करते हैं।


विवाह पंचमी का महत्व


  1. धार्मिक महत्व: विवाह पंचमी भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र बंधन का प्रतीक है। इस दिन श्रद्धालु मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करते हैं। ख़ासकर, रामचरितमानस का पाठ करते हैं और राम-सीता विवाह का आयोजन करते हैं। यह हमें आदर्श दांपत्य जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
  2. सांस्कृतिक महत्व: विवाह पंचमी भारत के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है। विशेष रूप से उत्तर भारत और मिथिला क्षेत्र में इस दिन बड़े उत्साह के साथ राम-सीता विवाह का रामलीला किया जाता है। इस पर्व से जुड़ी परंपराएं हिंदू धर्म की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का काम करती हैं। यह पर्व समाज में एकता और प्रेम का संदेश फैलाता है।
  3. दान-पुण्य का महत्व: विवाह पंचमी के दिन दान का विशेष महत्व है। लोग गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, धन और अन्य सामग्रियों का दान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन दान करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है। दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि और बरकत बनी रहती है।


विवाह पंचमी पर पूजा-अर्चना की विधि


  1. स्नान और संकल्प: प्रातःकाल स्नान कर भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा का संकल्प लें। स्वच्छ कपड़े पहनें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. पूजा की सामग्री: श्रीराम और माता सीता की मूर्ति या चित्र, दीपक, धूप, फूल, तुलसी दल, चंदन, फल, मिठाई।
  3. पूजन विधि: सबसे पहले भगवान श्रीराम और माता सीता का स्मरण करें। दीपक और धूप जलाकर पूजा आरंभ करें। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड या बालकांड का पाठ करें। भगवान को फूल और तुलसी दल अर्पित करें। अब प्रसाद चढ़ाकर आरती करें।
  4. दान का महत्व: पूजा के बाद मंदिर में या गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। इस दिन विशेष रूप से कन्याओं को भोजन कराना शुभ माना जाता है।


विवाह पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त


  1. पर्व की तिथि: 8 दिसंबर 2024 (रविवार)
  2. शुभ मुहूर्त: प्रातःकाल 9:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक


विवाह पंचमी से जुड़ी मान्यताएं 


विवाह पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भगवान श्रीराम और माता सीता के जीवन से जुड़े आदर्शों को अपनाने का अवसर भी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रेम, त्याग, और मर्यादा से परिपूर्ण दांपत्य जीवन न केवल व्यक्ति के जीवन को सुखी बनाता है, बल्कि समाज को भी सकारात्मक दिशा में प्रेरित करता है। ये पूजा और दान व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है। विवाह पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पर्व भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र विवाह के स्मरण के साथ-साथ उनके गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करने का दिन होता है। 


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