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छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इसी दिन से व्रतधारी प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करते हैं। इस दिन खरना विशेष महत्व रखता है और इसे एकांत या बंद कमरे में संपन्न किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्रत की पवित्रता बनाए रखने के लिए इस दिन व्रती को किसी भी तरह की आवाज या बाहरी रुकावट से बचना चाहिए। व्रतियों का मानना है कि यह शांति और आस्था बनाए रखने का प्रतीक है। जिससे छठी मईया और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।
खरना के दिन व्रती एकांत या बंद कमरे में प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस परंपरा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि खरना के दौरान किसी भी तरह की बाहरी आवाज या व्यवधान व्रत की पवित्रता को प्रभावित कर सकती है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने से पहले व्रतियों को शुद्धता और एकाग्रता की स्थिति में रहना आवश्यक होता है ताकि पूजा का पूरा लाभ प्राप्त हो सके। अगर इस समय कोई बाहरी आवाज या किसी व्यक्ति की उपस्थिति होती है तो व्रती को प्रसाद ग्रहण करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है जिससे ये व्रत खंडित होने का डर रहता है। मान्यता के अनुसार इस दिन की शांति व्रत की कठिनाई को सहज बनाती है और व्रती का मनोबल बढ़ाती है।
खरना का व्रत दूसरे दिन होता है जिसे नहाय-खाय के अगले दिन संपन्न किया जाता है। इस दिन सुबह से ही व्रती स्नानादि कर शुद्ध हो जाते हैं और भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हैं। शाम के समय व्रती मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद तैयार करते हैं। प्रसाद में मुख्य रूप से साठी के चावल, गुड़ और दूध से बनी खीर, गेहूं की रोटी और केले का भोग होता है।
हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाई जाती है। खरना के दिन व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का विशेष ध्यान रखते हैं। खरना की पूजा शाम के समय संपन्न होती है। 2024 में, सूर्योदय प्रातः 06:37 बजे और सूर्यास्त शाम 05:32 बजे होगा। इस समय व्रती भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।
छठ पर्व विशेष रूप से भगवान सूर्य और छठी मैया की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखते हैं। इस व्रत को व्रतधारी संतान की सुख-समृद्धि, लंबी आयु और परिवार की समृद्धि के लिए करते हैं। यह व्रत श्रद्धा, भक्ति, और शुद्धता का प्रतीक है। छठ पूजा में खरना का दिन निर्जला व्रत की शुरुआत होती है। व्रतधारी इसे शांति और एकांत में करते हैं ताकि उनका मन पवित्र और एकाग्र बना रह सके।
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