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माघ माह का प्रारंभ होने जा रहा है। इस दौरान बड़ी संख्या में कल्पवासी संगम तट पर पहुंचने वाले हैं। पुराणों में भी इस महीने का वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं। इसी कारण गंगा स्नान को विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। धर्म ग्रंथों में इस महीने के दौरान गंगा स्नान के महत्व को विस्तार से बताया गया है।
वहीं कुंभ भी अक्सर माघ माह में ही आयोजित होता है। इस बार का महाकुंभ भी माघ माह में हो रहा है। ऐसे में बहुत से लोगों के बीच स्नानों के कारण माघ मेला, और कुंभ मेले के बीच भ्रामकता। चलिए इसी भ्रामकता को दूर करते हैं और आपको इन आयोजनों के अंतर के बारे में बताते हैं।
हर साल जनवरी-फरवरी में माघ माह पड़ता है।जो हिंदू पंचांग के अनुसार जनवरी-फरवरी के बीच आता है।यह मेला कुंभ मेले का एक वार्षिक संस्करण है और हर 12 साल में कुंभ मेले के रूप में बड़े स्तर पर आयोजित होता है। मेला कुंभ मेले का एक वार्षिक संस्करण है और हर 12 साल में कुंभ मेले के रूप में बड़े स्तर पर आयोजित
कुंभ मेला भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है। यह मेला हर बार 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है और हर स्थान पर बारी-बारी से इसका आयोजन किया जाता है। इस मेले के दौरान, श्रद्धालु गंगा, क्षिप्रा, गोदावरी और संगम (जहां तीनों नदियां मिलती हैं) में पवित्र स्नान करते हैं।
अर्धकुंभ मेला हर छह साल में आयोजित होता है, जो इसे कुंभ मेले से अलग बनाता है। इसका आयोजन केवल दो स्थानों पर किया जाता है: प्रयागराज और हरिद्वार। "अर्ध" का अर्थ "आधा" होता है, इसलिए इसे छह साल के अंतराल पर मनाया जाता है।
हर 12 साल के अंतराल पर मनाए जाने वाले कुंभ मेले को पूर्ण कुंभ कहा जाता है। इसका आयोजन केवल प्रयागराज में संगम के पवित्र तट पर होता है। जनवरी 2025 में प्रयागराज में जो मेला आयोजित होगा, वह सिर्फ कुंभ नहीं, बल्कि पूर्ण कुंभ मेला होगा। इससे पहले, प्रयागराज में कुंभ मेला वर्ष 2013 में हुआ था। माना जाता है कि प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।
महाकुंभ मेला हर 144 साल में एक बार आयोजित किया जाता है और इसका आयोजन केवल प्रयागराज में ही होता है। यह मेला अपनी दुर्लभता और लंबे अंतराल के कारण अत्यधिक महत्व रखता है। 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद महाकुंभ का आयोजन होता है, जो इसे और भी विशिष्ट बनाता है।
कुंभ मेले के आयोजन का स्थान ज्योतिष गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है। इसके लिए ज्योतिष और अखाड़ों के प्रमुख आपस में बैठक करते हैं और मेले के स्थान का निर्धारण करते हैं। हिंदू ज्योतिष में सूर्य और बृहस्पति (गुरु) को प्रमुख ग्रह माना जाता है। इन ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर यह तय किया जाता है कि अगला कुंभ मेला कहां आयोजित होगा। बृहस्पति और सूर्य की विशेष स्थिति मेले के स्थान का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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