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महाकुंभ की शुरुआत में अब 1 महीने का समय बचा है। लगभग सभी अखाड़े प्रयागराज भी पहुंच चुके हैं। लेकिन इन दिनों शैव संप्रदाय का एक अखाड़ा चर्चा में बना हुआ है। दरअसल आवाहन अखाड़े ने कुंभ में शिविर लगाने के लिए पर्याप्त जमीन न मिलने पर नाराजगी जताई है और 10 एकड़ जमीन की मांग की है।
बता दें कि आवाहन अखाड़ा प्राचीनतम अखाड़ों में एक है, जिसके साधु-संत तप, त्याग, और योग साधना के लिए प्रसिद्ध है। यह अखाड़ा नागा साधुओं का प्रमुख केंद्र है। इसे आवाहन सरकार के नाम से भी जाना जाता है।चलिए आपको आवाहन अखाड़े के इतिहास, स्थापना और इससे जुड़ी बातों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
आवाहन अखाड़े का पूरा नाम "श्री पंचायती अखाड़ा आवाहन" है। यह जूना अखाड़ा का ही एक उप अखाड़ा है। इसकी स्थापना को लेकर कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है, लेकिन माना जाता है कि 547 ईस्वी में आदि शंकराचार्य ने इसकी स्थापना की थी। वहीं कई इतिहासकार इस अखाड़े की स्थापना 1547 में जदुनाथ सरकार द्वारा बताते हैं। इसका मुख्य केंद्र वाराणसी के दशाश्वमेध घाट में स्थित है। वहीं इसकी शाखाएं देश के कई हिस्सों में है। आवाहन अखाड़े के इष्ट देव श्री गणेश व दत्तात्रेय है, क्योंकि ये दोनों देवता आवाहन से ही प्रकट हुए थे।
हिंदू धर्म में 13 प्रमुख अखाड़ों में से 12 में महिलाओं को दीक्षा दी जाती है। लेकिन आवाहन अखाड़े में महिलाओं को दीक्षा नहीं दी जाती है। दअरसल आवाहन अखाड़े में मुख्य तौर पर नागा साधु दीक्षा लेते है, जो पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते है और नग्न रहते हैं। इसी के चलते यह परंपरा संतों के ध्यान और साधना को बनाए रखने के लिए बनाई गई थी।
आवाहन अखाड़े की अपनी एक विशिष्ट व्यवस्था और पदानुक्रम है।
1.महामंडलेश्वर
यह अखाड़े का सबसे बड़ा पद है, जिसे "धर्मगुरु" के समान माना जाता है। इस समय अखाड़े के महामंडलेश्वर अरुण गिरी महाराज है। महामंडलेश्वर का काम सभी धार्मिक, सामाजिक और प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करना और अखाड़े के नियमों और परंपराओं को बनाए रखना है।
2. महंत
यह दूसरा सबसे बड़ा पद है। जो मठों और आश्रमों की देखरेख करते हैं। इनका काम अखाड़े की संपत्ति, मंदिरों और आश्रमों की देखरेख करना। वहीं धार्मिक अनुष्ठानों और साधु दीक्षा के कार्यक्रमों का आयोजित करवाना है।
इस पद के बाद दीक्षित साधु और नागा साधु होते है, जो अखाड़े के दैनिक कामों में अपनी अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं।
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