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महाकुंभ का आगाज अब दूर नहीं है। इस महान धार्मिक आयोजन की तैयारियां जोरों पर हैं। लाखों श्रद्धालुओं के आगमन को देखते हुए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की जा रही हैं। महाकुंभ में साधु-संतों का विशेष महत्व होता है। ये संत अद्भुत योगासन करते हुए देखे जा सकते हैं। इन योगासनों को हठयोग कहा जाता है। हठयोग न केवल एक शारीरिक अभ्यास है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक यात्रा भी है।
यह साधु-संतों को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास में भी मदद करता है। हठयोग के माध्यम से वे मन को एकाग्र करते हैं और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं। महाकुंभ जैसे धार्मिक मेले में साधुओं द्वारा की जाने वाली कठोर तपस्या, जैसे जलते हुए अंगारों पर बैठना, कांटों के बिस्तर पर लेटना या दिन-रात खड़े रहना, अक्सर लोगों को आश्चर्यचकित करती है। सनातन धर्म में इस तरह की तपस्या को 'छठ योग' कहा जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन कठोर तपस्याओं के पीछे क्या रहस्य छिपा है? आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि साधु-संत किसके लिए इतना कड़ी तपस्या करते हैं।
हठ योग एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है जो शरीर और मन को एकीकृत करने पर केंद्रित है। साधु इन तपस्याओं के माध्यम से अपने शरीर को नियंत्रित करना सीखते हैं और अपनी आंतरिक शक्ति को जाग्रत करते हैं। ये तपस्याएं उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाती हैं और उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद करती हैं।
साधु संत सदियों से हठयोग के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते रहे हैं। वे मानते हैं कि कठोर तपस्या और शारीरिक कष्ट सहकर वे अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण पा सकते हैं। इस प्रक्रिया में वे अक्सर अत्यंत कठिन आसन, प्राणायाम और अन्य शारीरिक अभ्यास करते हैं।
राजाओं द्वारा किया जाने वाला हठ, जो अक्सर शक्ति और अधिकार प्राप्त करने के लिए किया जाता था। बच्चों का हठ, जो अपनी इच्छाओं को पूरा कराने के लिए किया जाता है। स्त्रियों का हठ, जो प्रायः अपने प्रियजनों की खुशी के लिए किया जाता है। साधुओं द्वारा किया जाने वाला हठ, जो आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
बता दें, योगहठ में साधु संत अपने शरीर को साधन बनाकर आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर होते हैं। वे मानते हैं कि शारीरिक और मानसिक कष्ट सहकर वे अपने भीतर छिपे हुए दिव्य तत्व को जाग्रत कर सकते हैं।
अधिकतर साधु जेठ के महीने में पंचधूनी की कठिन तपस्या करते हैं। इस दौरान वे पांच अग्निकुंडों के बीच बैठकर ध्यान करते हैं। हर दिन कुंडों की संख्या बढ़ती जाती है। इस तपस्या में साधु भस्म लगाकर अग्नि के पास बैठते हैं और सिर पर गीला कपड़ा बांधते हैं। पंचधूनी की परंपरा बहुत पुरानी है। माता पार्वती ने भी शिवजी से विवाह के लिए ऐसी तपस्या की थी। साधु इस तपस्या से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं।
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