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अखाड़े सनातन धर्म में साधु संतों का बड़ा केंद्र है। यही से साधु संत अपनी दीक्षा पूरी कर संन्यास धारण करते हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 13 अखाड़ों को मान्यता दे रखी है। यह 13 अखाड़े भी 3 संप्रदाय में बंटे हुए हैं। इनके अपने अपने इष्ट देव और कुल देवता हैं। वहीं मुख्य तौर पर इन अखाड़ों में महिला और पुरुष साधु संत है।लेकिन इनसे इतर एक किन्नर अखाड़ा भी है। जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का एक अनूठा हिस्सा है। इसे किन्नर समुदाय की धार्मिक और सामाजिक पहचान को सशक्त करने के लिए साल 2015 में स्थापित किया गया है। इस अखाड़े के भी अपने इष्ट देव हैं। किन्नर अखाड़ा विशेष रूप से माता बहुचरा देवी की पूजा-अर्चना करता है। बहुचरा देवी को शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। चलिए आपको बहुचरा देवी के बारे में और विस्तार से बताते हैं।
किन्नर अखाड़े शैव संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। देवी बहुचरा "किन्नरों की कुलदेवी" हैं। बहुचरा देवी को किन्नर समुदाय की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इनकी पूजा के बिना किन्नर कोई काम नहीं शुरू करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वे उन लोगों की रक्षक हैं जो समाज से अलग या उपेक्षित हैं। इसी कारण से किन्नर अपने घरों में किन्नर समाज भी अपने घरों में बहुचरा माता का मंदिर बनाकर उनकी आराधना करते हैं।
बहुचरा देवी का प्रमुख मंदिर गुजरात के मेहसाणा जिले के बहुचराजी गांव में स्थित है। यह मंदिर न केवल किन्नर समुदाय बल्कि अन्य भक्तों के लिए भी आस्था का केंद्र है। खासकर निसंतान दंपत्ति संतान की प्राप्ति की कामना लेकर यहां आते हैं। इस मंदिर में मन्नत पूरी हो जाने पर लोग माता जी के नाम पर मुर्गा छोड़ते हैं.
बहुचरा माता से जुड़ी एक लोककथा बहुत प्रचलित है। कहा जाता है कि बहुचरा मां एक बंजारे की बेटी थीं। एक बार यात्रा करते समय उन पर और उनकी बहनों पर बापिया नामक एक डाकू ने हमला किया। उस वक्त बहनों ने अपने स्तन काट दिए और मौत को गले लगा लिया। इससे बहुचरा मां को गहरा दुख हुआ और उन्होंने बापिया को श्राप दिया कि वो नपुंसक बन जाए। बापिया को श्राप से मुक्ति पाने के लिए महिलाओं की तरह सजना था और बहुचरा मां की उपासना करनी थी। तब से ही बहुचरा मां किन्नरों की माता बन गईं।
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