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पौष पूर्णिमा के स्नान के बाद प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 44 घाटों पर पहले दिन 1 करोड़ 65 लाख श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। बड़ी संख्या में देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु हिंदू धर्म के समागम में पहुंचे। भक्तों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा की गई। पहले स्नान के बाद अब बारी है पहले शाही स्नान की। महाकुंभ में आज पहला शाही होगा। तमाम अखाड़ों के साधु संत बारी- बारी से संगम के तट पर स्नान करेंगे। माना जाता है शाही स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति है। लेकिन कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि स्नान को शाही स्नान क्यों कहा जाता है। चलिए आपको इस सवाल का लेख के जरिए उत्तर देते हैं।
शाही स्नान" नाम इस परंपरा को शाही वैभव और दिव्यता से जोड़ता है। पुराने समय में राजा-महाराजाओं के साथ-साथ साधु-संतों का एक भव्य जुलूस स्नान के लिए जाता था। यह जुलूस एक शाही परेड जैसा होता था, जिसके कारण इसे "शाही स्नान" कहा जाने लगा। इस आयोजन में नागा साधु, महामंडलेश्वर, और प्रमुख संत अपने शिष्यों के साथ सबसे पहले स्नान करते हैं।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह परंपरा वेदों के समय से चली आ रही है, जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसकी शुरुआत मध्यकाल में हुई थी। वहीं हिन्दू धर्म ग्रंथों के मुताबिक पौराणिक काल में देवता और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला। इस अमृत कलश के लिए देवता और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी।अमृत के गिरने के कारण इन स्थानों को पवित्र माना गया। इसी वजह से कुंभ मेला इन चार जगहों पर आयोजित होता है और यहां स्नान करना पवित्र माना जाता है।
पहले शाही स्नान के लिए अखाड़ों ने पूर्व निर्धारित क्रम के अनुसार स्नान किया। श्री पंचायती अखाड़ा ने परंपरा के मुताबिक महानिर्वाणी सबसे पहले अमृत स्नान किया। श्री शम्भू पंचायती अटल अखाड़ा ने महानिर्वाणी अखाड़े के साथ शाही स्नान किया। अखाड़ा ने 5.15 मिनट पर शिविर से प्रस्थान किया और 6.15 पर घाट पहुंचा। इसे 40 मिनट का समय स्नान के लिए दिया गया।
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