नागा साधु के नाम कैसे रखे जाते हैं

नागा साधु कितने प्रकार के होते हैं? जानिए कैसे रखे जाते हैं इनके नाम 


नागा साधु भारत की प्राचीन साधु परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाते हैं। इनका जीवन तपस्या, साधना और आत्मज्ञान की खोज में समर्पित रहता है। नागा साधुओं को मुख्य रूप से महाकुंभ के चार स्थानों के अनुसार ही चार प्रकार में बांटा गया है। बता दें कि महाकुंभ भारत के चार शहरों, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद में लगता है। इसलिए, नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया भी इन्हीं चार शहरों में होती है। तो आइए इस आलेख में नागा साधुओं के नामकरण, उनके नागा साधु बनने की प्रक्रिया और  प्रकार के बारे में विस्तार से जानते हैं। 



कौन होते हैं नागा साधु?  


नागा साधु अपने कठिन जीवन, ब्रह्मचर्य और भौतिक इच्छाओं से मुक्त जीवनशैली जीने के लिए जाने जाते हैं। यह परंपरा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी। जिनका उद्देश्य वैदिक धर्म और सनातन परंपराओं की रक्षा करना था। नागा साधु भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं, जो उनकी साधना और भौतिक वस्त्रों से अलगाव का प्रतीक माना जाता है।


कैसे रखे जाते हैं नागा साधुओं के नाम? 


नागा साधुओं का नाम भी अलग-अलग होता है।  जिससे कि यह पहचान हो सके कि उन्होंने किस स्थान से नागा बनने की दीक्षा पूरी की है। जैसे प्रयागराज के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक में दीक्षा वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।



नागा साधु कितने प्रकार के होते हैं?


नागा साधुओं के समूह को अखाड़ा कहा जाता है। ये अखाड़े धार्मिक आयोजनों और सनातन धर्म की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। नागा साधुओं को उनके दीक्षा स्थल के अनुसार ही विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।


  • प्रयागराज के कुंभ में दीक्षा लेने वाले:- इन साधुओं को नागा साधु कहा जाता है। यह कुंभ मेले की परंपरा का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं। ये मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठिन साधना करते हैं।

  • उज्जैन में दीक्षा लेने वाले:- इन्हें खूनी नागा कहा जाता है। इनका नाम उनकी दृढ़ता और तपस्या में उनके कठोर नियमों के कारण रखा गया है।

  • हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले:- इन्हें बर्फ़ानी नागा के नाम से जाना जाता है। यह नाम उनके सर्द और बर्फीले स्थानों में साधना करने की परंपरा से प्रेरित है।

  • नासिक में दीक्षा लेने वाले:- इन्हें खिचड़िया नागा कहा जाता है। यह नाम उनकी विशिष्ट परंपराओं और जीवनशैली से जुड़ा है।



नागा साधुओं का जीवन 


निर्वस्त्र नागा साधुओं का जीवन साधारण नहीं होता। उनका दिन तप और साधना से शुरू होता है। नागा बनने के बाद ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करना ही उनका मुख्य कर्तव्य होता है। नागा साधुओं को ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। यह शिक्षा उन्हें आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। इससे नागा साधु भौतिक चीज़ों और सुख-सुविधाओं से दूर हो जाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वे कठिन तपस्या और साधना के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक यात्रा को पूर्ण करते हैं। कुंभ जैसे आयोजनों में उनकी उपस्थिति दर्शाती है कि साधना और तपस्या आज भी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 




डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।