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हिंदू धर्म के 13 अखाड़ों में निरंजनी अखाड़ा प्रमुखता से जाना जाता है । शैव संप्रदाय का यह अखाड़ा साधु संतों की संख्या में दूसरे नंबर पर आता है। इसकी खास बात है कि यहां के 70 फीसदी से ज्यादा संत डिग्रीधारक होते है। कोई डॉक्टर होता है, तो कोई इंजीनियर, तो कोई प्रोफेसर। कह सकते हैं कि इन लोगों का डिग्रियां लेने के बाद सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया था।
हालांकि यह अखाड़ा बाकि सभी अखाड़ों के मुकाबले सबसे धनी है। इसकी जड़ें गहरी और व्यापक है, जो भारत में सनातन परंपरा को समृद्ध कर रही है। निरंजनी अखाड़ा द्वारा कई शिक्षण संस्थान भी चलाए जा रहे हैं जहां वेदों, पुराणों और संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है। चलिए आपको इस अखाड़े के इतिहास, स्थापना और उससे जुड़ी रोचक बातों के बारे में और विस्तार से बताते हैं।
निरंजनी अखाड़े की स्थापना को लेकर कई दावे है। लेखक और इतिहासकार सिद्धार्थ शंकर गौतम की किताब ‘सनातन संस्कृति का महापर्व सिंहस्थ’ के मुताबिक निरंजनी अखाड़े की स्थापना 905 ईस्वी में गुजरात के मांडवी में हुई। महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़े की नींव रखी ।वहीं इसका इतिहास डूंगरपुर रियासत के राजगुरु मोहनानंद के समय से मिलता है। किताबों के मुताबिक इनका स्थान प्रयागराज का दारागंज है। वहीं हरिद्वार, काशी, त्र्यंबक, ओंकार, उज्जैन, उदयपुर बगलामुखी जैसी जगहों पर निरंजनी अखाड़े के आश्रम हैं।
निरंजनी अखाड़े का ऐतिहासिक उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा करना और इसका प्रचार प्रसार करना था। इसी कारण से अखाड़े के गुरुओं ने कई स्कूल, कॉलेज और संस्थान बनाए। आज निरंजनी अखाड़ा सबसे धनी अखाड़ा माना जाता है। इसकी देश के कई राज्यों में 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्तियां है।
निरंजनी अखाड़े में पहले शामिल होने के नियम बेहद सख्त होते है। लेकिन समय के साथ इनमें ढील दी गई। यहां संन्यास लेने के लिए योग्यता का होना जरूरी है। इसके बाद पांच साल तक आपको ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।फिर अपने गुरू की पूरे मन से सेवा करना पड़ती है। इसी के बाद व्यक्ति को नागा दीक्षा दी जाती है। कुछ समय पहले अखाड़े में शामिल होने के लिए इंटरव्यू का प्रस्ताव पेश किया था।
निरंजनी अखाड़े ने 2020 में हरिद्वार कुंभ से नाम वापस लेकर एक मिसाल पेश की थी। दरअसल 2020 मे हरिद्वार कुंभ के दौरान कोरोना अपने पीक पर था। ऐसे समय पर इतने बड़े समागम से कोरोना और तेजी से फैलता । इसी के चलते निरंजनी अखाड़े ने कुंभ में शामिल होने से इनकार कर दिया। इस फैसले के बाद कई और अखाड़ों भी हरिद्वार कुंभ से हट गए। जिससे प्रशासन का काम आसान हुआ।
निरंजनी अखाड़े से अच्छा उदाहरण दिखता है कि जब ज्ञान, भक्ति और वैराग्य एक साथ आते हैं तो धर्म फलता फूलता है।
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