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शैव संप्रदाय के 7 प्रमुख अखाड़े हैं। इनमें से ही एक अखाड़ा है 'आनंद अखाड़ा'। इसका पूरा नाम 'श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती’ है। अखाड़े के नाम का संबंध "आध्यात्मिक आनंद" से है, जो इस तथ्य को दर्शाता है कि इसका उद्देश्य ईश्वर से जुड़कर मोक्ष और आनंद की प्राप्ति करना है।
आनंद अखाड़े की स्थापना भगवान आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। यह अखाड़ा सामाजिक क्रियाओं और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। वहीं संगीत कला का इससे गहरा नाता है। जिसके कारण अखाड़े के साधु संत देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। इसी के चलते इनसे मिलने के बाद कई विदेशी पर्यटक कुंभ के समय भारत आते हैं। चलिए आपको आनंद अखाड़े के बारे में और विस्तार से बताते हैं।
आनंद अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत के मुताबिक 856 में बरार में हुई थी। इसका मुख्य केंद्र उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा किनारे स्थित है । हरिद्वार से ही अखाड़े की सभी धार्मिक, प्रशासनिक और सामाजिक गतिविधियों का संचालन होता है। वहीं इसका प्रमुख मठ महाराष्ट्र के त्र्यंबकेश्वर सहित देश के कई तीर्थ स्थानों पर मौजूद है। अखाड़े के इष्ट देव सूर्य भगवान है।सूर्य जीवन और आनंद प्रदान करते हैं, इसलिए इसे आनंद अखाड़ा नाम दिया गया।
आनंद अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद नहीं होता है, जो इसे बाकी अखाड़ों से अलग बनाता है। अखाड़े की परंपराओं के मुताबिक यहां प्रमुख पद आचार्य का होता है।आचार्य ही अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों का नेतृत्व करते हैं।यह परंपरा आनंद अखाड़े की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। अखाड़े के संस्थापकों ने आचार्य को ही सर्वोच्च पद देने का निर्णय लिया था। इससे समझ आता है कि आनंद अखाड़े के साधु- संत पद के मुकाबले मोक्ष और साधना को ज्यादा महत्व देते हैं।
आनंद अखाड़ा अपनी कई अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता है, जिनमें से एक है इसका लोकतांत्रिक ढांचा। आजादी से बहुत पहले से ही आनंद अखाड़े में एक तरह का प्रजातंत्र प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
सामूहिक निर्णय
आनंद अखाड़े के प्रमुख निर्णय सभी वरिष्ठ साधु- संत, महंत, नागा साधु मिलकर लेते हैं। यह नेतृत्व या प्रशासन का कार्य साझा जिम्मेदारी के सिद्धांत पर आधारित है।
समानता का अहसास
आनंद अखाड़े की निर्णय प्रक्रिया में सभी सदस्यों की राय को महत्व दिया जाता है।इस व्यवस्था से सभी साधु-संतों को समानता का अहसास होता है।
पदों के लिए चुनाव
अखाड़े के सचिव, कोषाध्यक्ष जैसे पदों के लिए चुनाव होते है, जिसमें साधु-संत वोट डालते हैं। जिससे व्यवस्था में पारदर्शिता बनी रहती है।
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