आमलकी एकादशी पौराणिक कथा

 Amalaki Ekadashi Katha: ब्रह्मा जी के आंसुओं से हुई थी आंवले की उत्पत्ति, यहां पढ़ें पौराणिक कथा 


फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी के अलावा आंवला एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन आंवले पेड़ की उत्तपति हुई थी। आंवले पेड़ की उत्पति को आमलकी एकादशी के रूप में इस दिन मनाया जाता है। साल में दो बार इस पेड़ की पूजा की जाती है। एक आमलकी एकादशी और दूसरा कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि जिसे आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। आइए विस्तार में आंवले पेड़ की उत्पत्ति से जुड़ी रोचक पौराणिक कथाओं के बारे में जानें



आमलकी एकादशी का शुभ मुहूर्त


हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 9 मार्च को सुबह 7:45 बजे प्रारंभ होगी। इस तिथि का समापन 10 मार्च को सुबह 7:44 बजे होगा। इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार आमलकी एकादशी 10 मार्च को मनाई जाएगी और इसी दिन इसका व्रत किया जाएगा।



ब्रम्हा जी के आंसू से उत्पन्न हुआ आंवले का पेड़


मान्यता के मुताबिक जिस तरह शिवजी के आंसूओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई उसी तरह ब्रम्हा जी के आंसूओं से आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। पौराणिक कथा के मुताबिक, जब पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब ब्रम्हा जी के मन में सृष्टि दोबारा शुरू करने का विचार आया और कमल पुष्प पर बैठकर ब्रम्हा जी परब्रम्हा की तपस्या करने लगे। ब्रम्हा जी की तपस्या से खुश होकर परब्रम्हा भगवान विष्णु प्रकट हुए जिन्हें देखकर ब्रम्हा जी खुशी से रोने लगे और उनके आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने लगे और ब्रम्हा जी के आंसूओं से आमलकी यानी आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ। जिस पर भगवान विष्णु ने कहा कि यह आंवला का पेड़ हमेशा ही मुझे प्रिय रहेगा। साथ ही जो भी इस पेड़ की पूजा करेगा उसके सारे पाप मिट जाएंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी। 



भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है आंवला 


आंवले को धातृ वृक्ष भी कहते हैं। यह वृक्ष धर्म का आधार माना जाता है और भगवान विष्णु को बेहद प्रिय भी है। सृष्टि की रचना के क्रम में सबसे पहले आंवले का वृक्ष ही उत्पन्न हुआ था। इसलिए इसे आदिरोह या आदि वृक्ष भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस तरह समुद्र मंथन में विष की हल्की बूंदें जहां-जहां गिरी वहां पर भांग-धतूरा जैसी बूटियां जन्मीं तो वहीं अम़ृत की बूंदें जहां छलकीं वहां पर आंवला और अन्य गुणकारी पेड़ों का जन्म हुआ।



आमलकी एकादशी पर आंवले की पूजा का महत्व


फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान जनार्दन, मां लक्ष्मी के साथ आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा और परिक्रमा करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मृत्यु के बाद उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। 


........................................................................................................
मोक्षदा एकादशी पर कैसे करें तुलसी पूजन

शास्त्रों मोक्षदा एकादशी का व्रत बेहद मंगलकारी माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है और यह सबसे पावन दिनों में से एक माना जाता है।

तूने अजब रचा भगवान खिलौना माटी का (Tune Ajab Racha Bhagwan Khilona Mati Ka)

तूने अजब रचा भगवान खिलौना माटी का,
माटी का रे, माटी का,

श्री शिव चालीसा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।

काले काले बदरा, घिर घिर आ रहे है (Kaale Kaale Badra Ghir Ghir Aa Rahe Hai)

काले काले बदरा,
घिर घिर आ रहे है,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।