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भगवान सूर्य की एक पत्नी जिसका नाम संज्ञादेवी था। इनकी दो संतानों में पुत्र यमराज और कन्या यमुना थी। संज्ञा रानी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को ना सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने लगीं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है। जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं।
इधर छाया का यम तथा यमुना से व्यवहार खराब होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का काम संपादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गौ लोक चली आई तो उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना को बहुत खोजवाया, मगर वे मिल ना सकीं।
फिर यमराज स्वयं ही गोलोक पहुंचे। जहां विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर हो स्वागत सत्कार के साथ भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा- “हे भैया! मैं आपसे यह वरदान मांगना चाहती हूं कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएं?” प्रश्न बड़ा कठिन था यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। अतः भाई को असमंजस में देखकर यमुना बोली- “आप चिन्ता ना करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जाएं।” इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया और कहा “इस तिथि को जो भाई अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांधकर यमपुरी को ले जाऊंगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा।”
तभी से भाई-बहन के रिश्ते का यह त्योहार मनाया जाने लगा। वह दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीय का था। तभी से गोवर्धन पूजन के अगले दिन ही भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भाई शाम के समय अपनी बहनो के घर जाएं और उनसे तिलक करवाएं।
उन्हें उपहार दें और साथ ही अपनी बेहन के घर का भोजन अवश्य करें। इस प्रकार से जो इस भाईदूज के पर्व को मनाता हैं वह अकाल मृत्यु से सदा बचा रहता है यमराज उसे नर्क नहीं ले जाते।
अपने रंग रंगलो गजानन,
दिल तुम्हारा हो गया,
मेरी आस तू है माँ,
विश्वास तू है माँ,
पापांकुशा एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है।
श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
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