विद्यारंभ संस्कार पूजा विधि

Vidyarambh Sanskar Puja Vidhi: बच्चों के विद्यारंभ संस्कार की सही पूजा विधि, जानें महत्व और पूरी प्रक्रिया


हिंदू संस्कृति में मनुष्य के जीवन के अलग अलग पड़ावों को संस्कारों के साथ पवित्र बनाया जाता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण संस्कार है विद्यारंभ संस्कार । यह संस्कार बच्चों के जीवन में शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक है। इसका आयोजन बच्चे के 3 से 5 साल के होने पर किया जाता है।  विद्यारंभ संस्कार में माता-पिता गुरु या विद्वान पंडित की उपस्थिति में विशेष पूजा-अर्चना करके बच्चे को पहली बार अक्षर लेखन करवाते हैं। ये संस्कार बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव रखने का कार्य करता है और उन्हें ज्ञान की तरफ प्रेरित करता है। दक्षिण भारत में इसे अक्षराभ्यास और बंगाल में हाटे खोरी के नाम से जाना जाता है। चलिए आपको इस संस्कार की पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताते हैं।


पूजन के लिए  आवश्यक सामग्री


  • भगवान गणेश और सरस्वती माता की मूर्ति या चित्र
  • पीले या सफेद वस्त्र
  • हल्दी, कुमकुम, चावल
  • कलश, आम या अशोक के पत्ते
  • गंगाजल
  • पंचामृत
  • धूप, दीप, अगरबत्ती
  • फूल और माला
  • फल, मिठाई, और प्रसाद
  • चौक या पट्टिका 
  • चंदन और रोली
  • पुस्तक या स्लेट और खड़िया (चाक)


विद्यारंभ संस्कार की प्रक्रिया


शुभ मुहूर्त का चयन 


विद्यारंभ संस्कार  लिए शुभ मुहूर्त करना आवश्यक होता है।  शुभ मुहूर्त निकालने से काम पूजा शुभ  योग में होती है। जिसका अच्छा असर बच्चे पर होता है। आमतौर पर विद्यारंभ संस्कार बसंत पंचमी, अक्षय तृतीया, विजयादशमी (दशहरा) या किसी अन्य शुभ दिन किया जाता है।


पूजन विधि 


  • सबसे पहले पूजा स्थल पर गणेश भगवान और माता सरस्वती  प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और  उनकी पूजा करें।गणपति मंत्र और सरस्वती वंदना का पाठ करें।
  • गणेश मंत्र: ॐ गं गणपतये नमः
  • सरस्वती वंदना: या कुन्देन्दुतुषारहारधवला...
  • बच्चे के लिए ली गई कलम, दवात, पट्टी और पुस्तक की पूजा करें।इसके बाद बच्चे को गोद में बैठाकर उससे  नई पट्टी पर 'ॐ' या कोई शुभ अक्षर लिखवाएं।
  •  बच्चे को गुरु या विद्वान व्यक्ति से पहला अक्षर दिखाएं और उनसे आशीर्वाद दिलवाएं। अंत में बच्चे को मिठाई खिलाएं और आशीर्वाद दें।
  • पूजा समाप्त होने के बाद भोग अर्पण करें और उपस्थित जनों में प्रसाद वितरित करें।


विद्यारंभ संस्कार का महत्व 


विद्यारंभ संस्कार का मकसद  बच्चों को ज्ञान और शिक्षा के महत्व के बारे में बताना होता है। यह उन्हें शिक्षा के पथ पर आगे बढ़ाता है। साथ ही इस संस्कार के जरिए उन्हें  भारतीय संस्कृति और मूल्यों की समझ होती है। इसके अलावा यह संस्कार गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना विकसित करता है।


........................................................................................................
दिसंबर में कब है अनंग त्रयोदशी व्रत

प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा को समर्पित एक पवित्र दिन है। इसे हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

घनश्याम तुम ना आये, जीवन ये बीता जाये (Ghanshyam Tum Na Aaye Jeevan Ye Beeta Jaye)

घनश्याम तुम ना आये,
जीवन ये बीता जाये ॥

क्यों मनाते हैं सकट चौथ

सकट चौथ व्रत करने से भगवान गणेश जी प्रसन्न होते हैं और सभी प्रकार के दुखों को हर लेते हैं। इस दिन माताएं अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य और दीर्घायु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना बेहद आवश्यक माना गया है।

सोमवती अमावस्या शुभ मुहूर्त

अमावस्या की तिथि पितरों के तर्पण और उनकी पूजा-अर्चना के लिए शुभ मानी जाती है। जब अमावस्या किसी सोमवार को पड़ती है, तो इसे 'सोमवती अमावस्या' कहते हैं। सनातन धर्म में इस दिन का महत्व बहुत अधिक है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।