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धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है (Dhara Par Andhera Bahut Chha Raha Hai)

धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है।

दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥


घना हो गया अब घरों में अँधेरा।

बढ़ा जा रहा मन्दिरों में अँधेरा॥

नहीं हाथ को हाथ अब सूझ पाता।

हमें पंथ को जगमगाना, पड़ेगा॥

॥ धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है...॥


करें कुछ जतन स्वच्छ दिखें दिशायें।

भ्रमित फिर किसी को करें ना निशायें॥

अँधेरा निरकुंश हुआ जा रहा है।

हमें दम्भ उसका मिटाना पड़ेगा॥

॥ धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है...॥


विषम विषधरों सी बढ़ी रूढ़ियाँ हैं।

जकड़ अब गयीं मानवी पीढ़ियाँ हैं॥

खुमारी बहुत छा रही है नयन में।

नये रक्त को अब जगाना पड़ेगा॥

॥ धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है...॥


प्रगति रोकती खोखली मान्यताएँ।

जटिल अन्धविश्वास की दुष्प्रथाएँ॥

यही विघ्न। काँटे हमें छल चुके हैं।

हमें इन सबों को हटाना पड़ेगा॥

॥ धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है...॥


हमें लोभ है इस कदर आज घेरे।

विवाहों में हम बन गए हैं लुटेरे॥

प्रलोभन यहाँ अब बहुत बढ़ गए हैं।

हमें उनमें अंकुश लगाना पड़ेगा॥


धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है।

दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥


॥ मुक्तक ॥

लक्ष्य पाने के लिए,

सबको सतत जलना पड़ेगा।

मेटने घन तिमिर रवि की,

गोद में पलना पड़ेगा॥


राह में तूफान आये,

बिजलियाँ हमको डरायें।

दीप बनकर विकट,

झंझावात में जलना पड़ेगा॥

थोड़ा देता है या ज्यादा देता है (Thoda Deta Hai Ya Jyada Deta Hai)

थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता,

मन लेके आया माता रानी के भवन में (Man Leke Aaya Mata Rani Ke Bhawan Mein)

मन लेके आया,
माता रानी के भवन में
बड़ा सुख पाया

ओ मेरे बाबा भोलेंनाथ (O Mere Baba Bholenath)

ना मांगू मैं हीरे मोती,
ना मांगू मैं सोना चांदी,

जबसे बरसाने में आई, मैं बड़ी मस्ती में हूँ(Jab Se Barsane Me Aayi Main Badi Masti Me Hun)

जबसे बरसाने में आई,
मैं बड़ी मस्ती में हूँ,

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