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रचा है श्रष्टि को जिस प्रभु ने (Racha Hai Srishti Ko Jis Prabhu Ne)

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है,

जो पेड़ हमने लगाया पहले,

उसी का फल हम अब पा रहे है,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है ॥


इसी धरा से शरीर पाए,

इसी धरा में फिर सब समाए,

है सत्य नियम यही धरा का,

है सत्य नियम यही धरा का,

एक आ रहे है एक जा रहे है,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है ॥


जिन्होने भेजा जगत में जाना,

तय कर दिया लौट के फिर से आना,

जो भेजने वाले है यहाँ पे,

जो भेजने वाले है यहाँ पे,

वही तो वापस बुला रहे है,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है ॥


बैठे है जो धान की बालियो में,

समाए मेहंदी की लालियो में,

हर डाल हर पत्ते में समाकर,

हर डाल हर पत्ते में समाकर,

गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है ॥


रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है,

जो पेड़ हमने लगाया पहले,

उसी का फल हम अब पा रहे है,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

वही ये सृष्टि चला रहे है ॥


जयपुर से लाई मैं तो चुनरी (Jaipur Se Layi Main Chunri)

जयपुर से लाई मैं तो,
चुनरी रंगवाई के,

चैत्र अमावस्या को क्यों कहते हैं भूतड़ी अमावस्या

चैत्र मास की अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह दिन नकारात्मक ऊर्जा, आत्माओं और मृत पूर्वजों से जुड़ा हुआ है।

राम कहने से तर जाएगा (Ram Kahne Se Tar Jayega Par Bhav Se Utar Jayega)

राम कहने से तर जाएगा,
पार भव से उतर जायेगा।

शंकर चौड़ा रे (Shankar Chaura Re)

शंकर चौड़ा रे, महामाई कर रही सोलह रे।
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