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शिव का डमरू डम डम बाजे (Shiv Ka Damru Dam Dam Baje)

शिव का डमरू डम डम बाजे,

टोली कावड़ियों की नाचे,

कावड़ियों की नाचे,

टोली कावड़ियों की नाचे,

शिव का डमरू डम डम बाजें,

टोली कावड़ियों की नाचे ॥


कोई पहने पीले वस्त्र,

कोई पहने लाल,

दाढ़ी मूछें बड़ी हुई हैं,

रूखे सूखे बाल,

शिव भोले को चले मनाने,

नंगे पैरों भागे,

शिव का डमरू डम डम बाजें,

टोली कावड़ियों की नाचे ॥


आंधी आवे पानी आवे,

चाहे दुपहरिया भारी,

जंगल हो या पहाड़ के रस्ते,

पांव न धरे पिछाड़ी,

कावड़ लेने चले है सारे,

लोग लुगाई बच्चे,

शिव का डमरू डम डम बाजें,

टोली कावड़ियों की नाचे ॥


भोले जी के धाम चले है,

एक दूसरे के संग में,

हरिद्वार से लेकर कावड़,

रंग गए शिव के रंग में,

सावन की रुत आई सुहानी,

गाए कोई नाचे,

शिव का डमरू डम डम बाजें,

टोली कावड़ियों की नाचे ॥


गंगाजल शंकर को चढ़ा कर,

भगत मगन हुए सारे,

हाथ जोड़ कर खड़े कावरिया,

शिव भोले के द्वारे,

‘आनन्द’ गाए शिव के भजन,

कावरिये मिलकर नाचे,

शिव का डमरू डम डम बाजें,

टोली कावड़ियों की नाचे ॥


शिव का डमरू डम डम बाजे,

टोली कावड़ियों की नाचे,

कावड़ियों की नाचे,

टोली कावड़ियों की नाचे,

शिव का डमरू डम डम बाजें,

टोली कावड़ियों की नाचे।।

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है (O Sanware Humko Tera Sahara Hai)

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है,
तेरी रहमतो से चलता,

मेहराँ वालिया साइयाँ रखी चरना दे कोळ - शब्द कीर्तन (Mehra Waliya Rakhi Charna De Kol)

मेहराँ वालिया साइयाँ रखी चरना दे कोळ,
रखी चरना दे कोल रखी चरना दे कोल,

उत्तपन्ना एकादशी 2024, पूजा विधि

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला उत्पन्ना एकादशी का पर्व भगवान विष्णु और देवी एकादशी की आराधना का विशेष दिन है।

मां नर्मदा की पूजा-विधि

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