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शीतल हैं शीतल वचन, चन्दन से अधिकाय ।
कल्प वृक्ष सम प्रभु चरण, हैं सबको सुखकाय ।।
जय श्री शीतलनाथ गुणाकर, महिमा मंडित करुणासागर ।
भाद्दिलपुर के दृढरथ राय, भूप प्रजावत्सल कहलाये ।।
रमणी रत्न सुनन्दा रानी, गर्भ आये श्री जिनवर ज्ञानी ।
द्वादशी माघ बदी को जन्मे, हर्ष लहर उठी त्रिभुवन में ।।
उत्सव करते देव अनेक, मेरु पर करते अभिषेक ।
नाम दिया शिशु जिन को शीतल, भीष्म ज्वाल अध होती शीतल ।।
एक लक्ष पुर्वायु प्रभु की, नब्बे धनुष अवगाहना वपु की ।
वर्ण स्वर्ण सम उज्जवलपीत, दया धर्मं था उनका मीत ।।
निरासक्त थे विषय भोगो में, रत रहते थे आत्म योग में ।
एक दिन गए भ्रमण को वन में, करे प्रकृति दर्शन उपवन में ।।
लगे ओसकण मोती जैसे, लुप्त हुए सब सूर्योदय से ।
देख ह्रदय में हुआ वैराग्य, आत्म राग में छोड़ा राग।।
तप करने का निश्चय करते, ब्रह्मर्षि अनुमोदन करते ।
विराजे शुक्र प्रभा शिविका में, गए सहेतुक वन में जिनवर ।।
संध्या समय ली दीक्षा अश्रुण, चार ज्ञान धारी हुए तत्क्षण ।
दो दिन का व्रत करके इष्ट, प्रथामाहार हुआ नगर अरिष्ट ।।
दिया आहार पुनर्वसु नृप ने, पंचाश्चार्य किये देवों ने ।
किया तीन वर्ष तप घोर, शीतलता फैली चहु और ।।
कृष्ण चतुर्दशी पौषविख्यता, केवलज्ञानी हुए जगात्ग्यता ।
रचना हुई तब समोशरण की, दिव्यदेशना खिरी प्रभु की ।।
आतम हित का मार्ग बताया, शंकित चित्त समाधान कराया ।
तीन प्रकार आत्मा जानो, बहिरातम अन्तरातम मानो ।।
निश्चय करके निज आतम का, चिंतन कर लो परमातम का ।
मोह महामद से मोहित जो, परमातम को नहीं माने वो ।।
वे ही भव भव में भटकाते, वे ही बहिरातम कहलाते ।
पर पदार्थ से ममता तज के, परमातम में श्रद्धा कर के ।।
जो नित आतम ध्यान लगाते, वे अंतर आतम कहलाते ।
गुण अनंत के धारी हे जो, कर्मो के परिहारी है जो ।।
लोक शिखर के वासी है वे, परमातम अविनाशी है वे ।
जिनवाणी पर श्रद्धा धर के, पार उतारते भविजन भव से ।।
श्री जिन के इक्यासी गणधर, एक लक्ष थे पूज्य मुनिवर ।
अंत समय में गए सम्म्मेदाचल, योग धार कर हो गए निश्चल ।।
अश्विन शुक्ल अष्टमी आई, मुक्तिमहल पहुचे जिनराई ।
लक्षण प्रभु का कल्पवृक्ष था, त्याग सकल सुख वरा मोक्ष था।।
शीतल चरण शरण में आओ, कूट विद्युतवर शीश झुकाओ ।
शीतल जिन शीतल करें, सबके भव आतप ।
अरुणा के मन में बसे, हरे सकल संताप।।
राधे जय जय माधव-दयिते
गोकुल-तरुणी-मंडल-महिते
वृश्चिक संक्रांति पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योंहार है। यह हिंदू संस्कृति में सौर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान सूर्य जी की पूजा के लिए विशेष माना होता है। वृश्चिक संक्रांति के समय सूर्य उपासना के साथ ही मंगल ग्रह शांति एवं पूजा करने से मंगल ग्रह की कृपा होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार होलाष्टक होली से पहले आठ दिनों की एक विशेष अवधि है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक चलती है। इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
पकड़ लो बाँह रघुराई,
नहीं तो डूब जाएँगे ।
श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल, तिरूअनंतपुरम (Shri Padmanabhaswamy Mandir, Kerala, Thiruvananthapuram)
श्रीसोमेश्वर स्वामी मंदिर(सोमनाथ मंदिर), गुजरात (Shri Someshwara Swamy Temple (Somnath Temple), Gujarat)
ॐकारेश्वर महादेव मंदिर, ओमकारेश्वर, मध्यप्रदेश (Omkareshwar Mahadev Temple, Omkareshwar, Madhya Pradesh)
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर - नेल्लोर, आंध्र प्रदेश (Sri Ranganadha swamI Temple - Nellore, Andhra Pradesh)
यागंती उमा महेश्वर मंदिर- आंध्र प्रदेश, कुरनूल (Yaganti Uma Maheshwara Temple- Andhra Pradesh, Kurnool)
श्री सोमेश्वर जनार्दन स्वामी मंदिर- आंध्र प्रदेश (Sri Someshwara Janardhana Swamy Temple- Andhra Pradesh)
Shri Sthaneshwar Mahadev Temple, Thanesar, Kurukshetra (स्थानेश्वर महादेव मंदिर, थानेसर, कुरुक्षेत्र)
अरुल्मिगु धनदायूंथापनी मंदिर, पलानी, तमिलनाडु (Arulmigu Dhandayunthapani Temple, Palani, Tamil Nadu)
गोमटेश्वर बाहुबली मंदिर, श्रवणबेलगोला, कर्नाटक (Gommateshwara Bahubali Temple, Shravanabelagola, Karnataka)
श्री श्री राधा गोपीनाथ मंदिर इस्कॉन चौपाटी मुंबई (Sri Sri Radha Gopinath Temple, ISKCON Chowpatty, Mumbai)
TH 75A, New Town Heights, Sector 86 Gurgaon, Haryana 122004
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