भीष्म अष्टमी की पूजा विधि

भीष्म अष्टमी के व्रत करने से पितरों को मिलती है मुक्ति, जाने कैसे करें पितामह की पूजा विधि 


सनातन धर्म में भीष्म अष्टमी का विशेष महत्व माना गया है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ‘भीष्म अष्टमी’ कहा जाता है। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान उनके पिता राजा शांतनु ने दिया था। महाभारत युद्ध के दौरान, अर्जुन के बाणों से घायल होने के बाद, वे लगभग 58 दिनों तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की और माघ मास में अपने प्राण त्याग दिए। तभी से इस दिन को भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन लोग अपने पितरों के उद्धार के लिए तर्पण करते हैं। कुश घास, तिल और जल अर्पित कर तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और पितृ दोष दूर होता है। आइए जानते हैं इस दिन की पूजा विधि...


भीष्म अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त:


  • तारीख: 5 फरवरी 2025
  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 5 फरवरी की रात 2:30 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 6 फरवरी की रात 12:35 बजे
  • उदया तिथि अनुसार व्रत एवं पूजा: 5 फरवरी 2025
  • श्राद्ध और तर्पण का शुभ समय: सुबह 11:30 बजे से दोपहर 1:41 बजे तक


भीष्म अष्टमी पूजा विधि:


1) इस दिन सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर पर ही मंत्र जाप करते हुए स्नान करें।

2) स्नान के दौरान, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हाथ में तिल लेकर इस मंत्र का जाप करें:

वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।
भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:।
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।

3) पूजा का संकल्प लेकर भगवान शिव की पूजा करें।

4) पूरे दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखें और पितरों के तर्पण के लिए पंडित द्वारा विधिवत कर्म करवाएं।

5) संध्या समय व्रत का पारण करें।


व्रत रखने के लाभ:


  • पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
  • इस व्रत से संस्कारवान और सदाचारी संतान की प्राप्ति होती है।
  • भीष्म अष्टमी का व्रत पापों को नष्ट करने में सहायक होता है।


भीष्म अष्टमी का महत्व:


माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन बाणों की शय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग किए थे। इस दिन पितरों के उद्धार के लिए तर्पण करने की परंपरा है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह का विधिवत तर्पण करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

हिंदू धर्म में यह भी माना जाता है कि जो लोग उत्तरायण में प्राण त्यागते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं।


........................................................................................................
श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम्

शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो।
अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥

ल्याया थारी चुनड़ी, करियो माँ स्वीकार(Lyaya Thari Chunri Karlyo Maa Swikar)

ल्याया थारी चुनड़ी,
करियो माँ स्वीकार,

बड़ी देर भई नंदलाला (Badi Der Bhai Nandlala)

बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।

पापमोचनी एकादशी पर तुलसी पूजन कैसे करें

पापमोचनी एकादशी भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित है जो चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह उपवास सभी पापों से छुटकारा पाने और मोक्ष प्राप्त करने के लिये रखा जाता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।