प्राण त्यागने से पहले भीष्म ने क्या कहा था?

भीष्म अष्टमी पर जानिए, प्राण त्यागने से पहले पितामह ने दुनिया को कौन से उपदेश दिए थे


सनातन धर्म में भीष्म अष्टमी का दिन अत्यंत शुभ माना गया है। यह महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जिसमें अनेक शिक्षाएं निहित हैं। महाप्रतापी योद्धा भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, जिसके कारण वे अपनी इच्छा से प्राण त्याग सकते थे। महाभारत युद्ध में अर्जुन के बाणों से आहत होने के बाद भी उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक अपने प्राण नहीं त्यागे और माघ मास की अष्टमी तिथि को देहत्याग किया। इसलिए इस दिन को भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

इस वर्ष 5 फरवरी 2025 को भीष्म अष्टमी मनाई जाएगी। कहा जाता है कि इस दिन व्रत और अनुष्ठान करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। जब भीष्म पितामह मृत्युशय्या पर थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को उनसे धर्म और नीति की शिक्षा लेने के लिए कहा था। भीष्म पितामह ने जो शिक्षाएं दीं, वे आज भी जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आइए जानते हैं वे शिक्षाएं...


पितामह भीष्म द्वारा दी गई शिक्षाएं:


  • अहंकार से बचें – चाहे जीवन में कितनी भी ऊँचाई प्राप्त कर लें, अहंकार नहीं करना चाहिए। यदि अहंकार आ जाए, तो अपने अतीत को याद करें।
  • जरूरतमंदों की सहायता करें – किसी भी जरूरतमंद को आश्रय देना चाहिए। साथ ही, न तो कभी किसी की निंदा करें और न ही किसी की निंदा सुनें।
  • शास्त्रों का अध्ययन करें – शास्त्रों को नियमपूर्वक सुनना और पढ़ना चाहिए। साथ ही, सभी को आदर देना चाहिए, भले ही सामने वाला व्यक्ति आपका सम्मान न करे।
  • दुख को हावी न होने दें – जो व्यक्ति व्यर्थ की चिंता करता है, वह अपना सर्वस्व नष्ट कर लेता है। इसलिए दुख को मन में प्रवेश न करने दें।
  • ईर्ष्या से बचें – जो व्यक्ति दूसरों की संपत्ति और सुख देखकर ईर्ष्या नहीं करता, विद्वानों का सम्मान करता है, आलस्य से दूर रहता है और सभी कार्य समय पर करता है, वह सदैव सुखी रहता है।
  • क्रोध पर नियंत्रण रखें – क्रोध पर नियंत्रण पाना सीखें और दूसरों को क्षमा करें, क्योंकि क्षमा करना सबसे बड़ा गुण है।
  • परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा – हर कार्य को पूर्ण करने का संकल्प लें। कड़ी मेहनत करें और जो आपकी शरण में आए, उसकी रक्षा करें।


58 दिनों बाद भीष्म पितामह ने त्यागा शरीर


हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, जो व्यक्ति सूर्य उत्तरायण के समय शरीर त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक पीड़ा सहने के बाद सूर्य उत्तरायण की प्रतीक्षा की और तभी अपने प्राण त्यागे। पौराणिक मान्यता के अनुसार, मृत्यु के समय भीष्म पितामह की आयु 150-200 वर्ष के बीच थी।


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