होली और रंगों का अनोखा रिश्ता

होली पर रंग क्यों लगाते हैं, जानिए क्यों मनाया जाता है ये रंगों का त्योहार


होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि ये खुशियां, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और गिले-शिकवे भुलाकर त्योहार मनाते हैं। लेकिन क्या आपने ये कभी सोचा है कि होली पर रंग लगाने की परंपरा कैसे शुरू हुई? इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी हुई है, जो भगवान श्रीकृष्ण और प्रह्लाद से जुड़ी है। तो आइए जानते हैं कि आखिर होली में रंग लगाने की परंपरा कब और कैसे हुई शुरू....



होली का गहरा संबंध भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम से


धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक होली का सबसे गहरा संबंध भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी से जुड़ा हुआ है। मान्यता ये भी है कि होली का संबंध भक्त प्रह्लाद, उनकी बुआ होलिका और राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की कथा से भी जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद की भगवान विष्णु में अटूट भक्ति से क्रोधित था। उसने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था।

होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बना और इस खुशी को मनाने के लिए अगले दिन रंगों से खेला जाने लगा।



प्राकृतिक रंग और वैज्ञानिक का महत्व


पुराने समय में होली खेलने के लिए गुलाल, टेसू के फूल, हल्दी, चंदन और नीम जैसे प्राकृतिक रंग बनाए जाते थे। ये सभी तत्व शरीर के लिए फायदेमंद होते थे और त्वचा को निखारने के साथ-साथ रोगों से बचाते थे।

दरअसल बसंत ऋतु में कई बीमारियाँ फैलती हैं, इसलिए होली के रंगों को संक्रमण से बचाने के एक माध्यम के रूप में भी देखा जाता था। माना जाता था कि प्राकृतिक रंग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और मन को प्रसन्न करते हैं।



होली पर रंगो का सामाजिक संदेश


होली सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और प्रेम का प्रतीक भी है। इस दिन जाति, धर्म और ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाकर सभी एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलते हैं।


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जय राम रमा रमनं समनं (Jai Ram Rama Ramanan Samanan)

जय राम रमा रमनं समनं ।
भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥

थारी चाकरी करूंगो दिन रात, बणाल्यो म्हाने चाकरियो(Thari Chakari Karungo Din Raat Banalyo Mhane Chakariyo)

थारी चाकरी करूंगो दिन रात,
बणाल्यो म्हाने चाकरियो,

कार्तिगाई दीपम पौराणिक कथा

कार्तिगाई दीपम का पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका समेत विश्व के कई तमिल बहुल देशों में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

ओ मेरे बाबा भोलेंनाथ (O Mere Baba Bholenath)

ना मांगू मैं हीरे मोती,
ना मांगू मैं सोना चांदी,

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