क्या हैं माघ मास में स्नान के नियम?

Magh Month 2025: माघ माह में स्नान करने के दौरान इन नियमों का जरूर करें पालन, मिलेंगे उत्तम परिणाम


माघ का महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।  यह महीना भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु और भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद पाना आसान होता है। माघ महीने में प्रयागराज में लगने वाला माघ मेला इस महीने का मुख्य आकर्षण होता है। यह मेला महाशिवरात्रि तक चलता है। इस मेले में लाखों लोग गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं और भगवान विष्णु और शिव की पूजा करते हैं। इस मेले में भजन-कीर्तन का आयोजन भी होता है जो लोगों को भगवत भक्ति की ओर प्रेरित करता है। माघ महीने में स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है। इस महीने में आप किसी भी तीर्थ में स्नान कर सकते हैं। अगर आप प्रयागराज जा सकते हैं तो संगम स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि संगम स्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। अगर आप तीर्थ स्नान नहीं कर सकते हैं तो घर पर ही नियमित रूप से स्नान करके भी आप पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अब ऐसे मेंमाघ माह में स्नान करने के नियम क्या हैं। इसके बारे में भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 

माघ में स्नान करने के नियम विस्तार से जान लें


  • माघ स्नान का व्रत करने वाला व्यक्ति को संयम का पालन करना चाहिए। संयम का अर्थ है अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना। उसे मन, वचन और कर्म से पाप कर्मों से बचना चाहिए। व्रती को नियमित रूप से पूजा-पाठ, ध्यान और जप करना चाहिए। उसे सत्य बोलना, दयालु होना और सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव रखना चाहिए।
  • माघ स्नान का संकल्प माघ महीने के पहले दिन ही लेना चाहिए। संकल्प लेने का अर्थ है कि आप इस महीने में नियमित रूप से स्नान करने का निश्चय करते हैं। स्नान के लिए जाते समय व्रती को गरम कपड़े नहीं पहनने चाहिए। ठंड के मौसम में भी बिना गरम कपड़ों के स्नान करने से व्यक्ति को यात्रा में पग-पग पर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को बहुत बड़ा पुण्य प्राप्त होता है।
  • तीर्थ में जाकर स्नान कर मस्तक पर मिट्टी लगाकर सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों का तर्पण करें। 
  • अपनी सामर्थ्य के अनुसार यदि हो सके तो प्रतिदिन हवन करें, एक ही बार भोजन करें, ब्रह्मचर्य व्रत धारण करें और भूमिपर शयन करें। 
  • तिल का उबटन, तिलमिश्रित जल से स्नान, तिलों से पितृ तर्पण, तिल का हवन, तिल का दान और तिल से बनी हुई सामग्री का भोजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। 
  • शीत ऋतु में तीर्थ स्थान पर जाकर अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए। साथ ही, तेल और आंवले का दान करना चाहिए। एक महीने तक नियमित रूप से स्नान करना चाहिए और अंत में वेदों का पाठ करने वाले ब्राह्मण को वस्त्र, भोजन आदि दान करके पूजा करनी चाहिए। इसके बाद, कंबल, वस्त्र, रत्न और अन्य गर्म कपड़े, रजाई, जूते आदि दान करते हुए 'माधवः प्रीयताम्' मंत्र का जाप करना चाहिए।

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