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छठ पूजा बिहार और इसके आस पास के क्षेत्र का प्रमुख पर्व है और काफी धूमधाम से इसे मनाया जाता है। इसमें सूर्यदेव और उनकी बहन छठी मईया की आराधना की जाती है। मान्यता है कि इससे जीवन में सुख, समृद्धि के साथ स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रामायण और महाभारत काल में इस व्रत का उल्लेख है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्यपुत्र कर्ण और पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी छठ व्रत किया गया था।
रामायण में छठ व्रत का जिक्र है। दरअसल, अयोध्या के राजा भगवान राम ने जब लंका पर विजय प्राप्त किया और अयोध्या लौटे तो उन्होंने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को उपवास रखा। श्री राम के साथ जगत जननी माता सीता ने भी इस व्रत को किया और भगवान सूर्य की आराधना की। सप्तमी के दिन उन्होंने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की और तब से यह परंपरा आगे चलकर छठ पर्व के रूप में मनाई जाने लगी। कहा जाता है कि इस पूजा से सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्यदेव और उनकी बहन छठी मईया की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी मईया भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन मानी जाती हैं। इस कारण छठ व्रत में छठी मईया की पूजा की जाती है। ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करते समय खुद को दो भागों में विभाजित किया पुरुष और प्रकृति। मान्यता है कि प्रकृति के छठे अंश से छठी देवी का जन्म हुआ है। जिन्हें 'देवसेना' और 'छठी मैया' के नाम से जाना जाता है।
महाभारत काल में भी छठ पूजा का विशेष महत्व था। महाभारत के महान योद्धा सूर्यपुत्र कर्ण भगवान सूर्य के ही परम भक्त भी थे। वह प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही कर्ण इतने शक्तिशाली योद्धा बने। इसी परंपरा के आधार पर आज भी छठ व्रत में सूर्य को जल अर्पित करने की प्रथा प्रचलित है। छठ पर्व पर लोग तालाब, नदी या किसी जलाशय में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
महाभारत काल की एक अन्य कथा में भी छठ पूजा का जिक्र है। जब पांडव अपना सारा राज्य जुए में हार गए तब उनकी पत्नी द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और सूर्यदेव से प्रार्थना की। उनकी तपस्या और श्रद्धा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया। इस कथा के आधार पर छठ पूजा को संकटों से मुक्ति और खोई हुई वस्तुओं की प्राप्ति का पर्व भी माना गया है।
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