पोला अमावस्या पूजा विधि (Pola Amavasya Puja Vidhi)

बैलों और गाय के बछड़ों को पूजने का पर्व है पोला अमावस्या, महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं देवी दुर्गा की पूजा 


सनातन परंपरा में हर प्रकृति से लेकर पशु-पक्षी का विशेष महत्व माना गया है। इन्हीं में से एक पर्व पोला अमावस्या का भी है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले इस पर्व पर किसान खास तौर पर बैलों की पूजा करते हैं और उनके प्रति सम्मान जताते हैं। ऐसा माना गया है कि बैल भगवान का स्वरुप हैं जिसके चलते उनकी पूजा की जाती है। पोला पर्व छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल पोला पर्व 2 सितंबर को मनाया जाएगा। इसे पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं। 


इसी दिन गर्भवती होती हैं अन्नमाता 


माना जाता है इस दिन अन्नमाता गर्भवती होती हैं और धान के पौधों में दूध भर जाता है, इसलिए इस दिन खेतों में जाने से मनाही होती है। गांवों और शहरों में इस दिन बाजारों में मिट्टी के बने खिलौने, विशेष रूप से बैल और पोला-जाट खिलौने, बिकते हैं। मिट्टी से बने बैल की पूजा इस त्योहार का मुख्य आकर्षण होती है। 


श्रीकृष्ण पोलासुर का इस दिन वध किया था


पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में पृथ्वी पर जन्म लिया, तो उनके मामा कंस ने उन्हें मारने के लिए कई राक्षस भेजे। उन्हीं में से एक राक्षस का नाम पोलासुर था, जिसे बालक कृष्ण ने अपनी लीला से मार दिया। यह घटना भाद्रपद मास की अमावस्या को हुई थी। तभी से इस दिन को पोला पर्व के नाम से जाना जाता है। 


बैलो की पूजा की विधि 


  • भाद्रपद अमावस्या के दिन बैल और गाय की रस्सियां खोल दी जाती है और उनके पूरे शरीर में हल्दी, उबटन, सरसों का तेल लगाकर मालिश की जाती है।


  • इसके बाद पोला पर्व वाले दिन इन्हें अच्छे से नहलाया जाता है और गले में खूबसूरत घंटी युक्त माला पहनाई जाती है।


  • बैलों को कपड़े और धातु के छल्ले पहनाए जाते है।


पिठोरी अमावस्या के नाम से भी जानते हैं लोग


इस दिन कुछ जगहों पर पिठोरी की पूजा होती है, इसलिए पिठोरी अमावस्या के नाम से जानी जाती है। श्राद्ध की अमावस्या होने के कारण स्नान करना भगवान शिव की पूजा करना मंदिर जाना होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में इस दिन वृषभ यानी बैलों की पूजा होता है। 2 सितंबर को संपूर्ण दिवस दिवस पोला का पर्व मनाया जाएगा जो कि अगले दिन सुबह 5:42 तक अमावस्या तिथि रहेगा। 


पितरों और संतान सुख के लिए भी होता है पूजन 


अमावस्या तिथि को पितरों की तिथि भी माना जाता है। इसलिए भी इसे पिथौरा अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन स्नान, दान, तर्पण और पिंडदान का महत्व है। अमावस्या तिथि पर शनिदेव के जन्म भी हुआ था। इसलिए ये दिन शनि दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति का दिन भी है। भाद्रपद का माह श्रीकृष्ण की माह है। इसलिए इसमें अमावस्या पर कृष्ण पूजा का विशेष महत्व है। 


इस पर्व को कुशोत्पाटनी या कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए व्रत भी रखती हैं। इस देवी दुर्गा की की पूजा की जाती है। माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था।


महाराष्ट्र में इस दिन खासतौर पर बनती है पूरणपोली


महाराष्ट्रीयन घरों में इस दिन विशेष तौर पर पूरणपोली और खीर बनाई जाती है। बैलों को पूरणपोली और खीर खिलाई जाती है। शहर के प्रमुख स्थानों से उनकी रैली निकाली जाती है। इस मौके पर बैल दौड़ और बैल सौंदर्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। खास तौर पर सजी-सवंरी बैलों की जोड़ी को इस दौरान पुरस्कृत किया जाता है।



........................................................................................................
जिन भवानी माँ (Jeen Bhawani Maa)

जिन भवानी माँ,
थारी महिमा न्यारी है,

बसंत पंचमी पर महाकुंभ का स्नान क्यों है खास?

महाकुंभ जो कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है इस बार बसंत पंचमी पर विशेष रूप से खास होने वाला है। इस दिन महाकुंभ में तीसरा अमृत स्नान होना तय हुआ है जो कि त्रिवेणी संगम में होगा।

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला (Bhaye Pragat Kripala Din Dayala)

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।

भजमन राम चरण सुखदाई (Bhajman Ram Charan Sukhdayi)

भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ॥

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।