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जनेऊ संस्कार को उपनयन संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार है। यह संस्कार बालक के जीवन में एक नया अध्याय शुरू करने का प्रतीक है। विशेष रूप से उपनयन संस्कार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जातियों के लड़कों के लिए किया जाता है। इस संस्कार में बालक को जनेऊ (पवित्र धागा) धारण कराया जाता है। जनेऊ संस्कार बालक को ब्रह्मचर्य का पालन करने और वेदों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करता है।इसे धारण करने के बाद उसे वेदाध्ययन और धार्मिक कर्मकांडों में भाग लेने की अनुमति मिलती है। साथ ही यह संस्कार परिवार और समाज में भी सम्मान का प्रतीक माना जाता है। चलिए आपको इस संस्कार की पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताते हैं।
जनेऊ धारण करने से स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं, क्योंकि यह शरीर के प्रमुख तंत्रिका बिंदुओं को सक्रिय करता है। शारीरीक के साथ जनेऊ धारण करने से व्यक्ति का मानसिक और आत्मिक विकास होता है। यह ब्रह्मचर्य, अनुशासन और संयम के महत्व को सिखाता है और व्यक्ति को समाज और परिवार में सम्मान दिलाता है।
जनेऊ हमेशा बाएं कंधे पर धारण किया जाता है और दाईं ओर लटकता है।इसे स्नान के समय सिर पर रखना चाहिए और शौच के समय दाएं कान पर लपेटना चाहिए।साथ ही जनेऊ को समय-समय पर बदलना चाहिए, ताकि उसकी पवित्रता बनाए रखी जा सके।
उपनयन संस्कार बालक को संयम, अनुशासन और आध्यात्मिक ज्ञान के महत्व को समझाने के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य बालक को अनुशासित, जिम्मेदार और धर्मपरायण बनाना होता है। ऐसा माना जाता है कि यह संस्कार बालक को आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर ले जाता है। जनेऊ धारण करने से व्यक्ति को वेद, शास्त्र और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने की अनुमति मिलती है।
लूटरू महादेव जय जय,
लुटरू महादेव जी,
हर कदम पे तुम्हे होगा,
आभास सांवरे का,
ये मैया मेरी है,
सबसे बोल देंगे हम,
दीन कहे धनवान सुखी
धनवान कहे सुख राजा को भारी ।
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