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बिन पानी के नाव (Bin Pani Ke Naav)

बिन पानी के नाव खे रही है,

माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥


भूखें उठते है भूखे तो सोते नहीं,

दुःख आता है हमपे तो रोते नहीं,

दिन रात खबर ले रही है,

माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥


उसके लाखों दीवाने बड़े से बड़े,

उसके चरणों में कंकर के जैसे पड़े,

फिर भी आवाज मेरी सुन रही है,

माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥


मेरा छोटा सा घर महलों की रानी माँ,

मेरी औकात क्या महारानी है माँ,

साथ ‘बनवारी’ माँ रह रही है,

माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥


ज्यादा कहता मगर कह नहीं पा रहा,

आंसू बहता मगर बह नहीं पा रहा,

दिल से आवाज ये आ रही है,

माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥


बिन पानी के नाव खे रही है,

माँ नसीब से ज्यादा दे रही है ॥

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सनातन धर्म में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर शबरी जयंती मनाई जाती है। इस दिन व्रत और पूजन का विधान है। इस दिन भगवान राम के साथ माता शबरी का पूजन किया जाता है।

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