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ब्रजराज ब्रजबिहारी! इतनी विनय हमारी (Brajaraj Brajbihari Itni Vinay Hamari)

ब्रजराज ब्रजबिहारी, गोपाल बंसीवारे

इतनी विनय हमारी, वृन्दा-विपिन बसा ले


कितने दरों पे भटके, कितने ही दर बनाये

अब तेरे हो रहें हैं, जायें न हम निकाले

ब्रजराज ब्रजबिहारी, गोपाल बंसीवारे


जोड़ी तेरी हमारी कैसी रची विधाता

जो तुम हो तन के काले, हम भी हैं मन के काले

ब्रजराज ब्रजबिहारी, गोपाल बंसीवारे


लाखों को अपना समझे, लाखों के हो लिये हम

अब तेरे हो रहे हैं, अपना हमें बना ले

ब्रजराज ब्रजबिहारी, गोपाल बंसीवारे


राज़ी तेरी रज़ा में, अपनी बनी या बिगड़े

नाचेंगे हम तो नटवर जैसा हमें नचा ले

ब्रजराज ब्रजबिहारी, गोपाल बंसीवारे

इतनी विनय हमारी, वृन्दा-विपिन बसा ले

श्री हरि स्तोत्रम् (Sri Hari Stotram)

जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालंशरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं

अनंग त्रयोदशी व्रत कथा

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को अनंग त्रयोदशी कहा जाता है। अनंग त्रयोदशी व्रत प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है।

खेल पंडा खेल पंडा खेल पंडा रे

खेल पंडा खेल पंडा खेल पंडा रे। (खेल पंडा खेल पंडा खेल पंडा रे।)

चोला माटी के हे राम (Chola Maati Ke Hai Ram)

चोला माटी के हे राम,
एकर का भरोसा,

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