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गजमुखं द्विभुजं देवा लम्बोदरं (Gajmukham Dvibhujam Deva Lambodaram)

गजमुखं द्विभुजं देवा लम्बोदरं,

भालचंद्रं देवा देव गौरीशुतं ॥


कौन कहते है गणराज आते नही,

भाव भक्ति से उनको बुलाते नही ॥


कौन कहते है गणराज खाते नही,

भोग मोदक का तुम खिलाते नही ॥


कौन कहते है गणराज सोते नही,

माता गौरा के जैसे सुलाते नही ॥


कौन कहते है गणराज नाचते नही,

रिद्धि सिद्धि के जैसे नचाते नही ॥


गजमुखं द्विभुजं देवा लम्बोदरं,

भालचंद्रं देवा देव गौरीशुतं ॥

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गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

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