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जगत के सर पर जिनका हाथ, वही है अपने भोले नाथ(Jagat Ke Sar Par Jinka Hath Vahi Hai Apne Bholenath)

जगत के सर पर जिनका हाथ,

वही है अपने भोले नाथ,

जिन चरणों में सदा झुकाती,

जिन चरणों में सदा झुकाती,

सारी दुनिया माथ,

वही है अपने भोले नाथ,

वही है अपने भोले नाथ ॥


श्रष्टि के पालक तुम ही,

कुशल संचालक तुम ही,

तुम्ही हो जग विस्तारक,

तुम्ही इसके संघारक,

जिनको पाकर कभी ना समझे,

जिनको पाकर कभी ना समझे,

खुद को कोई अनाथ,

वही है अपने भोले नाथ,

वही है अपने भोले नाथ ॥


हिमालय पर तुम रहते,

मार मौसम की सहते,

गले में सर्प लपेटे,

मगन मन रहते लेटे,

भूत प्रेत बेताल हमेशा,

भूत प्रेत बेताल हमेशा,

रहते जिनके साथ,

वही है अपने भोले नाथ,

वही है अपने भोले नाथ ॥


कृपा सब पर बरसाते,

सभी का मन हर्षाते,

भक्त गण जब भी टेरे,

सदा जो दौड़े आते,

अनुज ‘देवेंद्र’ भी पाकर जिनको,

अनुज ‘देवेंद्र’ भी पाकर जिनको,

अब हो गए सनाथ,

वही है अपने भोले नाथ,

वही है अपने भोले नाथ ॥


जगत के सर पर जिनका हाथ,

वही है अपने भोले नाथ,

जिन चरणों में सदा झुकाती,

जिन चरणों में सदा झुकाती,

सारी दुनिया माथ,

वही है अपने भोले नाथ,

वही है अपने भोले नाथ ॥

भगवान कार्तिकेय के प्रमुख मंदिर

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक चंद्र मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इसलिए भक्त हर महीने इस तिथि को उनका जन्मोत्सव मनाते हैं।

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शिव शंकर भोलेनाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,

जगदीश ज्ञान दाता(Jagadish Gyan Data: Prarthana)

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