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मन की तरंग मार लो(Man Ki Tarang Mar Lo Bas Ho Gaya Bhajan)

मन की तरंग मार लो, बस हो गया भजन।

आदत बुरी संवार लो, बस हो गया भजन॥


आये हो तुम कहाँ से, जाओगे तुम कहाँ।

इतना ही विचार लो, बस हो गया भजन॥


कोई तुम्हे बुरा कहे, तुम सुन कर क्षमा करो।

वाणी का स्वर संभाल लो, बस हो गया भजन॥


नेकी सभी के साथ में बन जाए तो करो।

मत सर बंदी का हर लो, बस हो गया भजन॥


नजरो में तेरी दोष है, दुनिया निहारते।

समता का अंजन ढाल लो, बस हो गया भजन॥


यह महल माडिया ना तेरे साथ जायेगी।

सतगुरु की महिमा जान लो, बस हो गया भजन॥


अनमोल ब्रह्मानंद जो चाहिए सदा।

घट घट में राम निहार लो, बस हो गया भजन॥


मन की तरंग मार लो, बस हो गया भजन।

आदत बुरी संवार लो, बस हो गया भजन॥

मेरे संग संग चलती(Mere Sang Sang Chalti)

संकट में झुँझन वाली की,
सकलाई देखि है,

तुम आशा विश्वास हमारे, रामा - भजन (Tum Asha Vishwas Hamare Bhajan)

नाम ना जाने, धाम ना जाने
जाने ना सेवा पूजा

काल क्या करेगा महाकाल के आगे (Kaal Kya Karega Mahakal Ke Aage)

कर लूँगा दो-दो बात मैं,
उस काल के आगे,

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी एकादशी (Kaartik Maas Ke Shukl Paksh Kee Prabodhinee Ekaadashee)

ब्रह्माजी ने कहा कि हे मनिश्रेष्ठ ! गंगाजी तभई तक पाप नाशिनी हैं जब तक प्रबोधिनी एकादशी नहीं आती। तीर्थ और देव स्थान भी तभी तक पुण्यस्थल कहे जाते हैं जब तक प्रबोधिनी का व्रत नहीं किया जाता।

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