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मेरे मन के अंध तमस में (Mere Man Ke Andh Tamas Me Jyotirmayi Utaro)

जय जय माँ, जय जय माँ ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।


मेरे मन के अंध तमस में,

ज्योतिर्मय उतारो ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।


मेरे मन के अंध तमस में,

ज्योतिर्मय उतारो ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।

जय जय माँ, जय जय माँ ।


कहाँ यहाँ देवों का नंदन,

मलयाचल का अभिनव चन्दन ।

मेरे उर के उजड़े वन में,

करुणामयी विचरो ॥

॥ मेरे मन के अंध तमस में...॥


नहीं कहीं कुछ मुझ में सुन्दर,

काजल सा काला यह अंतर ।

प्राणों के गहरे गह्वर में,

ममता मई विहरो ॥

॥ मेरे मन के अंध तमस में...॥


वर दे वर दे,

वींणा वादिनी वर दे ।

निर्मल मन कर दे,

प्रेम अतुल कर दे ।

सब की सद्गति हो,

ऐसा हम को वर दे ॥

॥ मेरे मन के अंध तमस में...॥


सत्यमयी तू है,

ज्ञानमयी तू है ।

प्रेममयी भी तू है,

हम बच्चो को वर दे ॥


सरस्वती भी तू है,

महालक्ष्मी तू है ।

महाकाली भी तू है,

हम भक्तो को वर दे ॥

तेरी जय हों जय हों, जय गोरी लाल(Teri Jay Ho Jay Ho Jay Gauri Lal)

तेरी जय हो जय हो,
जय गोरी लाल ॥

इष्टि पौराणिक कथा और महत्व

इष्टि, वैदिक काल का एक विशेष प्रकार का यज्ञ है। जो इच्छाओं की पूर्ति और जीवन में शांति लाने के उद्देश्य से किया जाता है। संस्कृत में 'इष्टि' का अर्थ 'यज्ञ' होता है। इसे हवन की तरह ही आयोजित किया जाता है।

बंसी बजाय गयो श्याम (Bansi Bajaye Gayo Shyam)

बंसी बजाय गयो श्याम,
मोसे नैना मिलाय के,

एक तमन्ना माँ है मेरी(Ek Tamanna Ma Hai Meri)

एक तमन्ना माँ है मेरी,
दिल में बसा लूँ सूरत तेरी,

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