होलिका दहन शुभ समय और भद्रा का साया

Holika Dahan Shubh Muhurat: होलिका दहन में भद्रा का साया, जानें शुभ मुहूर्त कब और कितना समय मिलेगा 


होली फेस्टिवल होलिका दहन के एक दिन बाद मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसका विशेष अर्थ है। बता दें कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और कई लोग होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जानते है। इसके साथ ही सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी इसका खास महत्व है। इस दिन लोग एक-दूसरे पर रंग और गुलाल लगाकर अपनी खुशियां बांटते हैं। दरअसल इस बार भद्रा की छाया होलिका दहन के दिन मंडरा रहा है, जिसके वजह से लोगों के मन में सवाल आ रहा है कि आखिर होलिका दहन का मुहूर्त कितने बजे से शुरू होगा।



होलिका दहन का जाने शुभ मुहूर्त और समय अवधि


हिंदू धर्म के अनुसार भद्राकाल को एक बुरा या अशुभ समय कहा जाता है। होलिका दहन के दिन यानी 13 मार्च को भद्रा प्रात: 10 बजकर 36 मिनट से आरंभ होकर रात 11 बजकर 27 मिनट तक होगा।  ऐसी स्थिति में भद्रा के समय कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है।  बता दें कि भद्रा खत्म होने के दौरान ही होलिका दहन किया जाएगा।


भद्राकाल 13 मार्च को पूर्व संध्या 6:57 मिनट से रात 8:14 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही भद्रा मुख रात 8:14 मिनट से रात 10:22 मिनट तक होगा। हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार भद्रा पूंछ के समय होलिका दहन हो सकता है, लेकिन भद्रा मुख में होलिका दहन नहीं ही करना चाहिए।



होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है 


फाल्गुन महीने की पूर्णिमा की तारीख 13 मार्च को सुबह 10.35 बजे से शुरू होगी, और ठीक इस पूर्णिमा तिथि का समापन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा। ऐसी स्थिति में होलिका दहन का शुभ समय 11:26 मिनट से 12:48 तक है। बता दें कि ये होलिका दहन के लिए 1 घंटे 21 मिनट का समय मिलेगा, और होलिका दहन के बाद रंग वाली होली 14 मार्च मनाई जाएगी।




........................................................................................................
मंगल की सेवा सुन मेरी देवाMangal Ki Sewa Sun Meri Deva)

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा,
हाथ जोड तेरे द्वार खडे ।

तोरी बगिया में आम की डाल, कोयल बोले कुहू कुहू: भजन (Tori Bagiya Mein Aam Ki Daal Koyal Bole Kuhu Kuhu)

तोरी बगिया में आम की डाल,
कोयल बोले कुहू कुहू ॥

क्यों खास है डोल पूर्णिमा

डोल पूर्णिमा का त्यौहार मुख्य रूप से बंगाल, असम, त्रिपुरा, गुजरात, बिहार, राजस्थान और ओडिशा में मनाया जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण की मूर्ति को पालकी पर बिठाया जाता है और भजन गाते हुए जुलूस निकाला जाता है।

हे करुणा मयी राधे, मुझे बस तेरा सहारा है (Hey Karuna Mayi Radhe Mujhe Bas Tera Sahara Hai)

हे करुणा मयी राधे,
मुझे बस तेरा सहारा है,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।