भगवान शिव क्यों बने थे भिखारी

Annapurna Jayanti Katha: जानिए भगवान शिव को क्यों धारण करना पड़ा था भिखारी का रूप, क्या है इसके पीछे की कथा?  


संसार के सभी जीव-जंतु जीवित रहने हेतु भोजन पर निर्भर रहते हैं। सनातन हिंदू धर्म में देवी अन्नपूर्णा को अन्न के भंडार और इसकी पूर्ति करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा है।  ये कथा शिवजी से जुड़ी हुई है। दरअसल, इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी और पृथ्वी पर आकर सभी इंसानों में अन्न वितरित किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसके बाद कभी भी पृथ्वी पर अन्न और जल की कमी नहीं आई। 


भगवान शिव ने लिया भिक्षु का रूप 


एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती पासे का खेल खेल रहे थे। देवी पार्वती ने भगवान शिव द्वारा दांव पर लगाई गई हर चीज जीत ली, जिसमें उनका त्रिशूल, नाग और कटोरा जैसी चीजें भी शामिल थीं। जब पासे का खेल समाप्त हुआ तो भगवान शिव एक जंगल में चले गए जहां उनकी मुलाकात भगवान विष्णु से हुई। भगवान विष्णु ने उन्हें फिर से खेल खेलने के लिए कहा। इसके बाद भगवान शिव अपने निवास पर वापस चले गए और भगवान विष्णु के वादे के अनुसार सब कुछ वापस जीत लिया। इससे देवी पार्वती को संदेह हो गया बाद में उन्हें पता चला कि भगवान विष्णु ने भगवान शिव की मदद की थी और पासा उनकी इच्छा के अनुसार चला गया था। माता पार्वती सिर्फ इस भ्रम में थी कि वे पासे का खेल शिवजी के साथ खेल रही हैं। 


तब देवी पार्वती को भगवान शिव ने बताया था कि भोजन सहित जीवन भी एक भ्रम है। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और कहा कि भोजन को माया कहना मुझे माया कहने के बराबर है। वह चाहती थी कि दुनिया उसके महत्व को जाने और इसलिए वह गायब हो गईं। 


इससे भूमि बंजर हो गई। मौसम में कोई बदलाव नहीं हुआ, जिससे सारी भूमि बंजर ही बनी रही। इससे हर जगह सूखा पड़ गया। और लोग भुखमरी का सामना करने लगे। तब धरती पर अन्न और जल की भारी कमी होने लगी। इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। ऐसे में मनुष्यों ने मिलकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव की आराधना की। भक्तों की प्रार्थना सुनकर विष्णु जी ने महादेव जी को उनकी योग निद्रा से जगाया और सारी व्यथा कह सुनाई। तब भगवान शिव ने भिक्षु और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का रूप धारण किया।


चूंकि, देवी पार्वती लोगों को भूखा नहीं देख सकती थीं इसलिए वह सभी को भोजन करवाने के लिए काशी शहर में उतरीं। जब भगवान शिव को पता चला कि देवी वापस आ गई हैं तो वे भी भिक्षु के रूप में हाथ में कटोरा लेकर उनसे भिक्षा मांगने गए। इसके बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कहा कि आत्मा शरीर में रहती है और भूखे पेट किसी को मोक्ष नहीं मिल सकता। तभी से देवी पार्वती को अन्नपूर्णा के रूप में पूजा जाता है। 


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षटतिला एकादशी व्रत कथा

सनातन धर्म में एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। पंचांग के अनुसार, माघ महीने की एकादशी तिथि को ही षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा-व्रत करने से का विधान है।

षटतिला एकादशी व्रत उपाय

माघ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा में तिल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

शरण में आये हैं हम तुम्हारी (Sharan Mein Aaye Hain Hum Tumhari)

शरण में आये हैं हम तुम्हारी,
दया करो हे दयालु भगवन ।

मनोज मुंतशिर रचित भए प्रगट कृपाला दीनदयाला रीमिक्स (New Bhaye Pragat Kripala Bhajan By Manoj Muntashir)

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