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कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि(Ki Ban Gaye Nandlal Lilihari)

कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,

री लीला गुदवाय लो प्यारी ।

दृगन पै लिख दे दीनदयाल

नासिका पै लिख दे नन्दलाल

कपोलन पै लिख दे गोपाल

माथे लिख दे, मोहन लाल

श्रवनन पै लिख सांवरो, अधरन आनंदकंद,

ठोड़ी पै ठाकुर लिखो, गले में गोकुलचन्द ।

छाती पै लिख छैल, बाँहन पै लिख दे बनवारी ।

कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,

री लीला गुदवाय लो प्यारी ।


हाथन पै हलधर जी को भईया लिख ,

संग संग तू आनंद-करैया लिख

उंगरिन पै प्यारो कृष्ण कन्हैया लिख

कहूं कहूं वृन्दावन बंसी को बजैया लिख

पेट पै लिख दे परमानन्द

नाभि पै लिख दे तू नन्दनन्द

पिण्डरी पै लिख दे घनश्याम

चरण पै चितचोर को नाम

रोम-रोम में लिख दे मेरो सांवरो गिरिधारी ।

कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,

री लीला गुदवाय लो प्यारी ।


सखी देखत सब रह गयी कौन प्रेम को फंद

बिसे बिस कोई और नहीं ये छलिया ढोटा नन्द

अंगिया में देखि कसी मुरली परम रसाल

प्यारो प्यारो कह कह हिय लायो नंदलाल ।

कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,

री लीला गुदवाय लो प्यारी ।

अहोई अष्टमी का महत्व और मुहूर्त

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। यह व्रत माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन माताएं अपने पुत्रों की कुशलता और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए निर्जला व्रत करती हैं।

प्रार्थना है यही मेरी हनुमान जी (Prarthana Hai Yahi Meri Hanuman Ji)

प्रार्थना है यही मेरी हनुमान जी,
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए,

भाद्रपद शुक्ल की वामन एकादशी (Bhadrapad Shukal Ke Vaman Ekadashi )

इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन ने कहा- भगवन्! अब आप कृपा कर मुझे भाद्र शुक्ल एकादशी के माहात्म्य की कथा सुनाइये और यह भी बतलाइये कि इस एकादशी का देवता कौन है और इसकी पूजा की क्या विधि है?

कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी(Kirpa Ki Na Hoti Jo Addat Tumhari)

मैं रूप तेरे पर, आशिक हूँ,
यह दिल तो तेरा, हुआ दीवाना

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