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माँ रेवा थारो पानी निर्मल,
खलखल बहतो जायो रे..
माँ रेवा !
अमरकंठ से निकली है रेवा,
जन-जन कर गयो भाड़ी सेवा..
सेवा से सब पावे मेवा,
ये वेद पुराण बतायो रे !
प्रथमहिं गुरुको शीश नवाऊँ | हरिचरणों में ध्यान लगाऊँ ||१||
मैं तो अपने श्याम की, दीवानी बन जाउंगी,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है, हमको तो जो कुछ भी देता,
जन्मे है राम रघुरैया, अवधपुर में बाजे बधैया,