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ना जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं (Na Jane Kaun Se Gun Par Dayanidhi Reejh Jate Hain)

ना जाने कौन से गुण पर,

दयानिधि रीझ जाते हैं ।

यही सद् ग्रंथ कहते हैं,

यही हरि भक्त गाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥


नहीं स्वीकार करते हैं,

निमंत्रण नृप सुयोधन का ।

विदुर के घर पहुँचकर भोग,

छिलकों का लगाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥


न आये मधुपुरी से गोपियों की,

दु:ख व्यथा सुनकर ।

द्रुपदजा की दशा पर,

द्वारका से दौड़े आते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥


न रोये बन गमन में,

श्री पिता की वेदनाओं पर ।

उठा कर गीध को निज गोद में ,

आँसु बहाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥


कठिनता से चरण धोकर,

मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।

वो चरणोदक स्वयं केवट के,

घर जाकर लुटाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥


ना जाने कौन से गुण पर,

दयानिधि रीझ जाते हैं ।

यही सद् ग्रंथ कहते हैं,

यही हरि भक्त गाते हैं ॥


भादी मावस है आई(Bhadi Mawas Hain Aai)

भादी मावस है आई,
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हर बात को भूलो मगर.. (Har Baat Ko Tum Bhulo Bhale Maa Bap Ko Mat Bhulna)

हर बात को भूलो मगर,
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मैं हर दिन हर पल हर लम्हा,
माँ ज्वाला के गुण गाता हूँ,

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