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हनुमान जी भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं। इसलिए, श्रीराम की पूजा में भी हनुमान जी का विशेष महत्व है। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है, क्योंकि वे अपने भक्तों के सभी दुःख और कष्ट हर लेते हैं। इसी कारण हिंदू धर्म में हनुमान जयंती का विशेष महत्व है। लेकिन, संकटमोचन हनुमान जी की जयंती साल में 2 बार मनाई जाती है। एक बार चैत्र मास में और दूसरी बार कार्तिक मास में। तो आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं कि आखिर साल में हनुमान जयंती दो बार क्यों मनाई जाती है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, हनुमान जी के जन्म की एक तिथि को उनके जन्मोत्सव के रूप में, जबकि दूसरी को विजय अभिनंदन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था।
धार्मिक मान्यता है कि हनुमान जी जन्म से ही असीम शक्ति के धनी थे। एक बार, जब हनुमान जी को जोरों की भूख लगी, तो उन्होंने सूर्य को ही फल समझकर खाने की चेष्टा की। उसी दिन राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिए आया था। जैसे ही राहु सूर्य को ग्रसने लगा, हनुमान जी भी सूर्य को पकड़ने के लिए लपके और उनका हाथ राहु को छू गया। हनुमान जी के स्पर्श से ही राहु घबराकर भाग गया और इंद्र से शिकायत की। उसने कहा, "आपने मुझे अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र को ग्रसकर अपनी क्षुधा शांत करने का साधन दिया था, लेकिन आज किसी और ने सूर्य का ग्रास कर लिया।"
राहु की बात सुनकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने वज्र से हनुमान जी की ठोड़ी पर प्रहार कर दिया। इससे उनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई और वे अचेत होकर गिर पड़े। अपने पुत्र की यह स्थिति देखकर पवनदेव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने वायु का प्रवाह ही रोक दिया। इससे संपूर्ण सृष्टि में संकट उत्पन्न हो गया। तब सभी देवी-देवताओं ने ब्रह्मा जी से सहायता की प्रार्थना की।
ब्रह्मा जी सभी देवताओं को लेकर वायुदेव के पास पहुंचे। वायुदेव, अपने अचेत पुत्र को गोद में लिए दुखी होकर बैठे थे। तब सभी देवी-देवताओं ने हनुमान जी को दूसरा जीवन प्रदान किया और उन्हें अपनी शक्तियों का अंश भी दिया।
इंद्र ने हनुमान जी के शरीर को वज्र के समान कठोर होने का आशीर्वाद दिया। जिस दिन हनुमान जी को दूसरा जीवन मिला, वह दिन चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसलिए, हर साल चैत्र पूर्णिमा को भी हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है।
वज्र का प्रहार हनुमान जी की ठोड़ी पर हुआ था, और ठोड़ी को संस्कृत में "हनु" कहा जाता है। इसी कारण, पवनपुत्र को हनुमान के नाम से भी जाना जाने लगा।
प्रभु राम का सुमिरन कर,
हर दुःख मिट जाएगा,
ओ मोटे मोटे नैनन के तू ,
ओ मीठे मीठे बैनन के तू
यशोमती नन्दन बृजबर नागर,
गोकुल रंजन कान्हा,
भारतीय संस्कृति में नदियों का महत्व बहुत अधिक है, उन्हें मां का दर्जा दिया जाता है। गंगा नदी के प्रति लोगों की आस्था से अधिकतर लोग परिचित हैं। हालांकि, देश भर में खासकर मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी का काफी महत्व है। इस बार 4 फरवरी को नर्मदा जयंती मनाई जा रही है।
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