ललिता देवी मंदिर शक्तिपीठ

Lalitha Devi Temple: 108 शक्तिपीठों में शुमार है मां ललिता देवी मंदिर, दर्शन मात्र से दूर होते हैं रोग और कष्ट


मां ललिता देवी का मंदिर देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर 88 हजार ऋषियों की तपस्थली, वेदों और पुराणों की रचना स्थली नैमिषारण्य में स्थित है। मां ललिता देवी को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। 108 शक्तिपीठों में शामिल इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। विशेष रूप से शारदीय और वासंतिक नवरात्र के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है।



मां ललिता देवी की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, नैमिषारण्य में एक बार यज्ञ का आयोजन हो रहा था। वहां दक्ष प्रजापति के आगमन पर सभी देवता उनका सम्मान करने के लिए खड़े हो गए, लेकिन भगवान शंकर नहीं उठे। इस अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष ने अपने यज्ञ में शिवजी को आमंत्रित नहीं किया।


जब मां सती को इसका पता चला, तो वे बिना भगवान शंकर की अनुमति लिए अपने पिता के घर पहुंच गईं। वहां उन्होंने अपने पिता को भगवान शिव की निंदा करते हुए सुना। यह सहन न कर पाने के कारण उन्होंने यज्ञ अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।


भगवान शिव को जब इसका पता चला, तो वे मां सती के शव को कंधे पर रखकर उन्मत्त भाव से भटकने लगे। इससे सृष्टि की समस्त व्यवस्था प्रभावित होने लगी। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।


मान्यता है कि नैमिषारण्य में मां सती का हृदय गिरा था। इस स्थान को लिंगधारिणी शक्तिपीठ कहा जाता है, जहां भगवान शिव लिंग स्वरूप में पूजे जाते हैं। यही स्थान मां ललिता देवी का मंदिर है। यहां माता के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।



मंदिर की विशेषताएं


  • मां ललिता देवी प्रमुख शक्तिपीठों में से एक हैं।
  • इस मंदिर का उल्लेख देवी भागवत और अन्य पुराणों में भी मिलता है।
  • नवरात्रि के दौरान यहां दुर्गा सप्तशती का अखंड पाठ होता है।
  • भक्त यहां नए कार्यों की शुरुआत से पहले दर्शन के लिए आते हैं।
  • मंदिर परिसर में मुंडन, अन्नप्राशन आदि संस्कार भी कराए जाते हैं।
  • गर्भगृह में पूर्व दिशा की ओर मां की प्रतिमा स्थापित है, जिसके दर्शन से भक्तों को मनोकामना सिद्धि प्राप्त होती है।


कैसे पहुंचे नैमिषारण्य?


  • रेल मार्ग: सीतापुर और बालामऊ जंक्शन से नैमिषारण्य के लिए ट्रेन सेवा उपलब्ध है। सीतापुर से दूरी 36 किमी और बालामऊ से 32 किमी है।
  • सड़क मार्ग: लखनऊ के कैसरबाग बस अड्डे से नैमिषारण्य के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। सीतापुर और हरदोई से भी यहां बस द्वारा पहुंचा जा सकता है।
  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ है, जो नैमिषारण्य से लगभग 100 किमी दूर स्थित है।


ठहरने की व्यवस्था


नैमिषारण्य में धर्मशालाओं और होटलों में ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था है। यहां एक हजार रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक के कमरे उपलब्ध हैं। साथ ही, भोजन के लिए विभिन्न रेस्टोरेंट भी मौजूद हैं।


........................................................................................................
प्रेम मुदित मन से कहो, राम राम राम (Prem Mudit Mann Se Kaho, Ram Ram Ram)

प्रेम मुदित मन से कहो,
राम राम राम ।

कन्हैया मेरी लाज रखना: भजन (Kanhaiya Meri Laaj Rakhna)

एक तू ही मेरा जग बेगाना,
कन्हैया मेरी लाज रखना,

शिव स्तुति: आशुतोष शशाँक शेखर

आशुतोष शशाँक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू, कोटि नमन दिगम्बरा ॥

ब्रह्मन्! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी (Brahman Swarastra Mein Hon)

वैदिक काल से राष्ट्र या देश के लिए गाई जाने वाली राष्ट्रोत्थान प्रार्थना है। इस काव्य को वैदिक राष्ट्रगान भी कहा जा सकता है। आज भी यह प्रार्थना भारत के विभिन्न गुरुकुलों व स्कूल मे गाई जाती है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने