स्कंद षष्ठी व्रत की पौराणिक कथा

क्यों मनाया जाता है स्कंद षष्ठी व्रत? जानिए भगवान कार्तिकेय से जुड़ी पौराणिक कथा 


स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय जिन्हें मुरुगन, सुब्रमण्यम और स्कंद के नाम से भी जाना जाता है उनकी पूजा को समर्पित है। यह व्रत मुख्यतः दक्षिण भारत में मनाया जाता है। भगवान कार्तिकेय को युद्ध और शक्ति के देवता के रूप में पूजते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं को तारकासुर नामक असुर से बचाने के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को उनके स्वर्गीय अधिकार लौटाए। इस दिन व्रत करने और भगवान कार्तिकेय की पूजा से भक्तों को विजय, शक्ति और कल्याण की प्राप्ति होती है।


पौराणिक कथा: भगवान कार्तिकेय का जन्म


पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के तहत हुआ। कथा के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव गहरे शोक में चले गए। वह तपस्या में लीन हो गए, जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए दैत्यों ने प्रबल शक्ति हासिल कर ली। धरती पर तारकासुर नामक राक्षस ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। उसकी ताकत इतनी अधिक थी कि देवताओं को लगातार पराजय का सामना करना पड़ा। अंततः सभी देवता ब्रह्मा जी की शरण में गए और उनसे समाधान की प्रार्थना की।

ब्रह्माजी ने कहा कि तारकासुर का अंत केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों हो सकता है। इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, लेकिन भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे। इस बीच, देवी पार्वती ने शिव की तपस्या से उन्हें प्रसन्न किया।


शिव-पार्वती विवाह और कार्तिकेय का जन्म


देवी पार्वती की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे विवाह किया। शुभ मुहूर्त में शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। इस विवाह के बाद, कार्तिकेय का जन्म हुआ। भगवान कार्तिकेय ने देवताओं के सेनापति के रूप में तारकासुर से युद्ध किया। अपने पराक्रम और रणनीति से उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को उनका स्वर्ग और अधिकार लौटाया।


षष्ठी तिथि और भगवान कार्तिकेय की पूजा


पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। उन्हें मुख्यतः दक्षिण भारत में पूजा जाता है। उनके अन्य नाम मुरुगन, सुब्रमण्यम, और स्कंद हैं। भगवान कार्तिकेय की पूजा न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग इन्हें प्रमुख देवता मानते हैं। माना जाता है कि उत्तर ध्रुव के पास उत्तर कुरु के क्षेत्र में उन्होंने "स्कंद" नाम से शासन किया था।


स्कंद पुराण और महत्व


भगवान कार्तिकेय के नाम पर "स्कंद पुराण" की रचना की गई, जो हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में से एक है। इस पुराण में भगवान स्कंद के पराक्रम और उनकी शिक्षाओं का वर्णन है।


स्कंद षष्ठी व्रत का लाभ


स्कंद षष्ठी व्रत करने से भक्तों को शक्ति, साहस, और विजय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने और समृद्धि लाने में सहायक माना जाता है।


........................................................................................................
दादी के दरबार की, महिमा अपरम्पार (Dadi Ke Darbar Ki Mahima Aprampaar)

दादी के दरबार की,
महिमा अपरम्पार,

है मतवाला मेरा रखवाला (Hai Matwala Mera Rakhwala)

है मतवाला मेरा रखवाला,
लाल लंगोटे वाला,

हुई गलियों में जय जयकार (Hui Galiyon Mein Jai Jaikaar)

हुई गलियों में जय जयकार,
आया गणपति तेरा त्यौहार ॥

आजा कलयुग में लेके, अवतार ओ भोले (Aaja Kalyug Me Leke, Avtar O Bhole)

अवतार ओ भोले,
अपने भक्तो की सुनले,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने