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मेरी शेरावाली मां, बदलती तकदीरे (Meri Sherawali Maa Badalti Takdire)

कभी जल्दी जल्दी,

कभी धीरे धीरे,

मेरी शेरावाली माँ,

बदलती तकदीरे ॥


कहते है कोई बदल ना पाता,

है हाथों की रेखा,

पर ये करिश्मा हमने माँ को,

रोज ही करते देखा,

तभी तो ये दुनियाँ,

दीवानी इसकी रे,

मेरी शेरावाली मां,

बदलती तकदीरे ॥


दीन दुखी लाखों ही आते,

मैया जी के द्वारे,

बारी बारी से मेरी मैया,

सबके काज संवारे,

यहाँ पर तो भरती,

झोलियाँ सब की रे,

मेरी शेरावाली मां,

बदलती तकदीरे ॥


अगर भरोसा सच्चा हो तो,

काम बने एक पल में,

देर उन्ही को लगती जिनके,

शंका रहती मन में,

कहे ‘सोनू’ रखो,

भावना सच्ची रे,

मेरी शेरावाली मां,

बदलती तकदीरे ॥


कभी जल्दी जल्दी,

कभी धीरे धीरे,

मेरी शेरावाली माँ,

बदलती तकदीरे ॥

रूक्मिणी-श्रीकृष्ण के विवाह से जुड़ी कथा

पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो इस साल 22 दिसंबर को पड़ रही है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पहली पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्म की याद में मनाया जाता है।

कहियो दर्शन दीन्हे हो, भीलनियों के राम (Kahiyo Darshan Dinhe Ho Bhilaniyo Ke Ram)

पंथ निहारत, डगर बहारथ,
होता सुबह से शाम,

माँ दिल के इतने करीब है तू(Maa Dil Ke Itne Kareeb Hai Tu)

माँ दिल के इतने करीब है तू,
जिधर भी देखूं नज़र तू आए,

अगर माँ ने ममता लुटाई ना होती (Agar Maa Ne Mamta Lutai Na Hoti)

अगर माँ ने ममता लुटाई ना होती,
तो ममतामयी माँ कहाई ना होती ॥

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