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शिव सन्यासी से मरघट वासी से (Shiv Sanyasi Se Marghat Wasi Se)

शिव सन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह,

मैं शिव को ध्याऊँगी,

उन्ही को पाऊँगी,

शिव संग करूँगी मैं तो ब्याह,

हाँ शिव संग मैं तो करूँगी ब्याह,

शिव संन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥


मैना ने समझाया,

वो है समशान का वासी,

तू महलों की रानी,

तू कैसे बनेगी दासी

गौरा तू सोचले सोचले,

कैसे करेगी ब्याह,

शिव संन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥


बाबा हिमाचल देखो,

सब ऋषियो को ले आए,

सबने मिलकर देखो,

फिर गौरा को समझाए,

औघड़ है योगी है योगी है,

कैसे होगा निबाह,

शिव संन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥


ना मानी थी गौरा,

वो शिव के ध्यान में लागी,

शिव की याद में सोई,

वो शिव की याद में जागी,

जनम जनम का साथ है साथ है,

जन्मो का रिश्ता,

शिव संन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥


शिव सन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह,

मैं शिव को ध्याऊँगी,

उन्ही को पाऊँगी,

शिव संग करूँगी मैं तो ब्याह,

हाँ शिव संग मैं तो करूँगी ब्याह,

शिव संन्यासी से मरघट वासी से,

मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥


श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

था बिन दीनानाथ आंगली कुण पकड़सी जी(Tha Bin Dheenanath Aangli Kun Pakadsi Ji)

था बिन दीनानाथ,
आंगली कुण पकड़सी जी,

आरती प्रियाकांत जू की (Aarti Priyakant Ju Ki)

आरती प्रियाकांत जु की , सुखाकर भक्त वृन्द हु की |
जगत में कीर्तिमयी माला , सुखी सुन सूजन गोपी ग्वाला |

प्रदोष व्रत और इसके प्रकार

प्रदोष व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। इसे भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और प्रत्येक वार पर आने वाले प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व और फल है।