मेरो बांके बिहारी अनमोल रसिया (Mero Banke Bihari Anmol Rasiya)

मेरो बांके बिहारी अनमोल रसिया ॥


दोहा – बांके बिहारी की,

बांकी अदा पे,

मैं बार बार बलि जाऊं,

जनम जनम वृन्दावन राजा,

तेरे चरणन की रज पाऊं ॥


मेरो बांके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया,

हो रसबसिया हो रंगरसिया,

ओ मेरे मन बसिया,

मेरो बाँके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया ॥


प्यारी-प्यारी सलोनी तेरी सुरतिया,

मेरे मन में बसी है तेरी मुरतिया,

प्यारी-प्यारी सलोनी तेरी सुरतिया,

मेरे मन में बसी है तेरी मूरतिया,

तू है मेरा मैं हूं तेरी,

ओ मेरे सांवरिया,

मेरो बाँके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया ॥


कैसी जादू भरी है तेरी बांसुरिया,

मैंने जबसे सुनी मैं हो गई बावरिया,

कैसी जादू भरी है तेरी बांसुरिया,

मैंने जब से सुनी मैं हो गई बावरिया,

मेरे मन में मेरे तन में,

बसे नट नागरिया,

मेरो बाँके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया ॥


मोटी मोटी यह तेरी कजरारी अखियां,

मीठी मीठी मधुर मंद मंद हंसीया,

मोटी मोटी यह तेरी कजरारी अखियां,

मीठी मीठी मधुर मंद मंद हसिया,

मुकुट तिरछा नैन तिरछे,

चरण में पैजनिया,

मेरो बाँके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया ॥


मैं हूं पागल तुम्हारी तुम हो मेरे पिया,

तेरे दर्शन को तरसे है मेरा जिया,

मैं हूं पागल तुम्हारी तुम हो मेरे पिया,

तेरे दर्शन को तरसे है मेरा जिया,

‘चित्र विचित्र’ ने जीवन,

तुम्हारे नाम कर दिया,

मेरो बाँके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया ॥


मेरो बांके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया,

हो रसबसिया हो रंगरसिया,

ओ मेरे मन बसिया,

मेरो बाँके बिहारी अनमोल रसिया,

मेरो कुंज बिहारी अनमोल रसिया ॥

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हे आनंदघन मंगलभवन, नाथ अमंगलहारी (Hey Anand Ghan Mangal Bhawa)

हे आनंदघन मंगलभवन,
नाथ अमंगलहारी,

सच्चा है माँ का दरबार, मैय्या का जवाब नहीं (Saccha Hai Maa Ka Darbar, Maiya Ka Jawab Nahi)

दरबार हजारो देखे है,
पर माँ के दर सा कोई,

बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया (Baba Baijnath Hum Aael Chhi Bhikhariya)

बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया,
अहाँ के दुअरिया ना,

प्रदोष व्रत क्यों रखा जाता है?

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। दरअसल, यह व्रत देवाधिदेव महादेव शिव को ही समर्पित है। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।

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