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ओम अनेक बार बोल (Om Anek Bar Bol Prem Ke Prayogi)

ओम अनेक बार बोल, प्रेम के प्रयोगी।

है यही अनादि नाद, निर्विकल्प निर्विवाद।

भूलते न पूज्यपाद, वीतराग योगी।

॥ ओम अनेक बार बोल..॥


वेद को प्रमाण मान, अर्थ-योजना बखान।

गा रहे गुणी सुजान, साधु स्वर्गभोगी।

॥ ओम अनेक बार बोल..॥


ध्यान में धरें विरक्त, भाव से भजें सुभक्त,

त्यागते अघी अशक्त, पोच पाप-रोगी।

॥ ओम अनेक बार बोल..॥


शंकरादि नित्य नाम, जो जपे विसार काम,

तो बने विवेक धाम, मुक्ति क्यों न होगी।

॥ ओम अनेक बार बोल..॥

- नाथूराम शर्मा 'शंकर'


श्री शाकम्भरी चालीसा (Shri Shakambhari Chalisa)

बन्दउ माँ शाकम्भरी, चरणगुरू का धरकर ध्यान ।
शाकम्भरी माँ चालीसा का, करे प्रख्यान ॥

जब तें रामु ब्याहि घर आए(Jab Te Ram Bhayai Ghar Aaye)

श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।

न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ: कामना (Na Dhan Dharti Na Dhan Chahata Hun: Kamana)

न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।
कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥

हे ज्योति रूप ज्वाला माँ (Hey Jyoti Roop Jwala Maa)

हे ज्योति रूप ज्वाला माँ,
तेरी ज्योति सबसे न्यारी है ।

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