नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे (Namaste Sada Vatsale Matruṛbhume)

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम् ।

महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ॥१॥


प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्रांगभूता

इमे सादरं त्वां नमामो वयम्

त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्

शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।


अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्

सुशीलं जगद् येन नम्रं भवेत्

श्रुतं चैव यत् कण्टकाकीर्णमार्गम्

स्वयं स्वीकृतं नः सुगंकारयेत् ॥२॥


समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम्

परं साधनं नाम वीरव्रतम्

तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा

हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम् ।


विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्

विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ॥३॥

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