तेरे नाम का करम है ये सारा (Tere Naam Ka Karam Hai Ye Sara)

तेरे नाम का करम है ये सारा,

भक्तो पे छाया है सुरूर शेरावालिये,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

तेरे रूप का है एक लश्कारा,

जग में है जितना भी नूर ज्योतावालीये,

तेरे नाम का करम हैं ये सारा,

भक्तो पे छाया है सुरूर शेरावालिये ॥


दूर गुफा में बैठे बैठे,

रोज करिश्मे करती है तू,

रोज करिश्मे करती है तू,

मैहरवाली एक नजर से,

सबके दुखड़े हरती है तू,

सबके दुखड़े हरती है तू,

खाली झोली जो लाता है,

उसकी झोली भरती है तू,

उसकी झोली भरती है तू,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

तेरे नाम का करम हैं ये सारा,

भक्तो पे छाया है सुरूर शेरावालिये ॥


इस द्वारे की धूल लगाकर,

पापी पावन हो जाते है,

पापी पावन हो जाते है,

काया कंचन हो जाती है,

छिलके चन्दन हो जाते है,

छिलके चन्दन हो जाते है,

तेरी दया हो जाये तो पल में,

रंक भी राजन हो जाते है,

रंक भी राजन हो जाते है,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

तेरे नाम का करम हैं ये सारा,

भक्तो पे छाया है सुरूर शेरावालिये ॥

BhaktiBharat Lyrics


तेरे नाम का करम है ये सारा,

भक्तो पे छाया है सुरूर शेरावालिये,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

शेरावाली मैहरवाली,

ज्योतावाली लाटावाली,

तेरे रूप का है एक लश्कारा,

जग में है जितना भी नूर ज्योतावालीये,

तेरे नाम का करम हैं ये सारा,

भक्तो पे छाया है सुरूर शेरावालिये ॥

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तेरे नाम का दीवाना, तेरे द्वार पे आ गया है: भजन (Tere Naam Ka Diwana Tere Dwar Pe Aa Gaya Hai)

तेरे नाम का दीवाना,
तेरे द्वार पे आ गया है,

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् (Shiv Panchakshar Stotram)

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनायभस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बरायतस्मै न काराय नमः शिवाय॥1॥

मौनी अमावस्या के उपाय

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, माघ का महीना 11वां होता है। इस माह में पड़ने वाले व्रत का विशेष महत्व होता है। इनमें मौनी अमावस्या भी शामिल है। माघ माघ की अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है।

प्रदोष व्रत पर क्या करें या न करें

प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए किया जाता है। यह व्रत प्रत्येक महीने में दो बार, त्रयोदशी तिथि को (स्नान, दिन और रात के समय के अनुसार) किया जाता है, एक बार शुक्ल पक्ष में और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में।

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