न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ: कामना (Na Dhan Dharti Na Dhan Chahata Hun: Kamana)

न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥


रहे नाम तेरा वो चाहूं मैं रसना ।

सुने यश तेरा वह श्रवण चाहता हूँ ॥


न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥


विमल ज्ञान धारा से मस्तिष्क उर्बर ।

व श्रद्धा से भरपूर मन चाहता हूँ ॥


न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥


करे दिव्य दर्शन तेरा जो निरन्तर ।

वही भाग्यशाली नयन चाहता हूँ ॥


न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥


नहीं चाहता है मुझे स्वर्ग छवि की ।

मैं केवल तुम्हें प्राण धन ! चाहता हूँ ॥


न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥


प्रकाश आत्मा में अलौकिक तेरा है ।

परम ज्योति प्रत्येक क्षण चाहता हूँ ॥


न मैं धान धरती न धन चाहता हूँ ।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूँ ॥


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श्री राम स्तुति: नमामि भक्त वत्सलं (Namami Bhakt Vatsalan)

नमामि भक्त वत्सलं ।
कृपालु शील कोमलं ॥

बिगड़ी बनाने आजा, एक बार मेरी मैया (Bigdi Banane Aaja Ek Baar Meri Maiya)

फूलों से सजाया है,
दरबार मेरी मैया,

हम को मन की शक्ति देना (Hum Ko Mann Ki Shakti Dena)

हम को मन की शक्ति देना,
मन विजय करें ।

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को (Suraj Ki Garmi Se Jalte Hue Tan Ko)

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया। मेरे राम ॥

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