लट्ठमार होली कैसे खेली जाती है

ऐसे खेली जाती है लट्ठमार होली, महिलाएं पुरुषों पर बरसाती हैं लट्ठ


बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है, जो इस साल 8 मार्च को पड़ रही है। यह त्योहार राधा-कृष्ण के प्रेम की लीलाओं को दर्शाता है। एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ बरसाने गए थे और वहाँ राधा और उनकी सखियों को छेड़ने लगे, जिससे राधा और उनकी सखियाँ परेशान होकर लट्ठ से भगवान श्रीकृष्ण और उनके मित्रों को मारने लगीं। तब से हर साल यह त्योहार मनाया जाने लगा, जिसमें नंदगांव से लोग बरसाना जाते हैं और उसके अगले दिन बरसाने से लोग नंदगांव होली खेलने आते हैं।



बरसाने की लट्ठमार होली की कुछ दिलचस्प बातें


अब बरसाने की होली न केवल वृंदावन में, बल्कि पूरे भारत और दुनिया में प्रसिद्ध हो चुकी है। इसलिए इस दिन दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। बरसाने की महिलाएँ लट्ठ लेकर नंदगांव के पुरुषों को मारती हैं, और पुरुष ढाल से खुद को बचाते हैं। फिर, अगर किसी पुरुष को लट्ठ लग जाता है, तो उसे महिलाओं के कपड़े पहनकर सबके सामने नाचना पड़ता है। यह देखने में काफी दिलचस्प होता है, और ऐसा कहा जाता है कि इसे खेलने से भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी प्रसन्न होते हैं, जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह होली ब्रज में हंसी, मज़ाक और प्रेम का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है।



लाठी चलाने की प्रतियोगिता


बरसाने की लट्ठमार होली में लाठी चलाने की प्रतियोगिता भी होती है। इस प्रतियोगिता में जो सबसे अच्छा लट्ठ चलाता है, उसे सम्मानित किया जाता है और कुछ उपहार भी दिए जाते हैं। इससे नई पीढ़ी को इसमें भाग लेने और भविष्य में अपनी संस्कृति को बनाए रखने का प्रोत्साहन मिलता है। इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पूरे देश से लोग आते हैं और यह चर्चा का विषय भी बनती है।



लट्ठमार होली में उपयोग होता है टेसू के फूलों का रंग


बरसाने की लट्ठमार होली में टेसू के फूलों के रंगों का उपयोग किया जाता है। ये रंग प्राकृतिक रूप से शुद्ध होते हैं और बहुत पुराने समय से यहाँ टेसू के फूलों के रंग से होली खेली जाती है, जिसकी अपनी पौराणिक मान्यता है। लट्ठमार होली को बहुत पवित्रता और हंसी-खुशी के साथ खेला जाता है।


........................................................................................................
मैं कितना अधम हूँ, ये तुम ही जानो (Main Kitna Adham Hu Ye Tum Hi Jano)

मैं कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो,

मेरे राम राइ, तूं संता का संत तेरे(Mere Ram Rai Tu Santa Ka Sant Tere)

मेरे राम राइ, तूं संता का संत तेरे ॥
तेरे सेवक कउ भउ किछु नाही, जमु नही आवै नेरे ॥

शिव के 108 नामों के जाप

26 फरवरी को इस बार महाशिवरात्रि का पर्व है। ये दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ है।

माता भुवनेश्वरी की पूजा विधि

माता भुवनेश्वरी हिंदू धर्म में पूजी जाने वाली एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें ब्रह्मांड की रानी और सृजन की देवी के रूप में जाना जाता है। उनका नाम "भुवनेश्वरी" दो शब्दों से मिलकर बना है - "भुवन" जिसका अर्थ है ब्रह्मांड और "ईश्वरी" जिसका अर्थ है स्वामिनी।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।